अर्जुन का प्रश्न - 15
अर्जुन पूछते हैं [ गीता श्लोक - 17.1 ]----हे प्रभू ! कृपया आप मुझे बताएं , शास्त्र बिधियों से हट कर परन्तु
श्रद्घा पूर्बक पूजा करनें वालों की स्थिति सात्विक, राजस एवं तामस में से कौन सी होती है ?
उत्तर में अध्याय - 17 के सभी अन्य 27 श्लोकों को देखना पडेगा।
अब एक बार अर्जुन की स्थिति को देखते हैं; अभी तक गीता में श्री कृष्ण के 556 श्लोकों में से 458 श्लोकों को
अर्जुन सुन चुके हैं लेकिन उनका मोह यथावत बना हुआ है । श्री कृष्ण सांख्य - योग के माध्यम से कर्म,
कर्म -योग, ज्ञान , कर्म-संन्यास , भोग, काम, क्रोध , लोभ, मोह, भय , अंहकार , बैराग्य तथा आत्मा-परमात्मा एवं प्रकृति- पुरूष सम्बन्ध - रहस्यों को स्पष्ट कर चुके हैं लेकिन उनका यह प्रयाश असफल होता दिख रहा है ।
चाह के साथ राम से जुड़ना और काम से जुड़ना एक सा है --यह बात मैं नहीं गीता बता रहा है ।
चाह के साथ राम से जुड़ना नासूर है और काम से जुड़ना एक मामूली सा जख्म है जिसका उपचार सम्भव है ,
आप पौराणिक कथाओं को देखें जीतनें भी महान असुर / दानव/ राक्षस हुए हैं वे सभी मुनियों के श्राप के कारण हैं । हमारे मुनि लोग बात-बात पर श्राप देते हुए दिखते हैं , यहाँ तक की अष्टाबक्र को भी श्राप देते बताया
गया है जो एक गुणातीत योगी हैं । त्रेता- युग एवं द्वापर- युग में जो कहानियां हैं उनसे मुनियों के श्रापों के
फलस्वरूप असुर/ दानव/ आदि हैं और उनको मुक्ति देनें के लिए श्री राम- श्री कृष्ण के अवतार हुए हैं ।
आप कहानियों को सुनते भर हैं कभी-कभी उन पर सोचा भी करिए ऐसा करना भी बुद्धि- योग है ।
श्राप क्या है ? क्रोध एवं अंहकार का मिश्रण , श्राप है । गीता [सूत्र - 3.37 ] कहता है ---काम का रूपांतरण
क्रोध है और करता - भाव [गीता-सूत्र 3.27 ] अंहकार की छाया है तथा अंहकार अपरा प्रकृति [गीता-सूत्र 7।4] के आठ तत्वों में एक तत्त्व है । गीता कहता है [ गीता-सूत्र 6।27, 2.52 ] -- राजस- तामस गुणों वाला परमत्मा से कभी जुड़ नहीं सकता और कथाओं में ऐसे लोगों को महान् तत्त्व -ग्यानी दिखाया जाता है । अवतारों से असुरों , राक्षसों एवं दानवों को तो मुक्ति मिल गयी लेकिन उनका क्या कसूर था जो उनके भोजन बन गए ।
अध्याय - 17 में श्री कृष्ण कहते हैं ----गुणों के आधार पर सात्विक , राजस एवं तामस तीन प्रकार के लोग हैं
इन सब का अपना-अपना यज्ञ , दान , तप , पूजा, प्रार्थना, भोजन तथा अन्य सभी गति बिधियाँ अलग-अलग होती हैं । अब आप गीता श्लोक 3.12, 4.12, 7.16, 9.25 को एक साथ देखें । यहाँ गीता कहता है -----अर्थाअर्थी , भय के कारण , जाननें के इक्षुक तथा तत्त्व ज्ञान से परमात्मा को तत्त्व से समझनें के लिए
चार प्रकार के लोग हैं । जो लोग भोग केंद्रित हैं वे देवताओं को पूजते हैं , भय वाले भूत-प्रेतों की पूजा करते हैं और राजस गुन धारियों में कुछ लोग यक्ष की पूजा करते हैं ।
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं ----जो चाह रहित स्थिति में मुझको याद करता रहता है वही मेरा परा भक्त है ।
परा भक्त के लिए परमात्मा निराकार नहीं रहता [गीता सूत्र 6।30,9।29,18।54,18।55 ] ।
====ॐ=======
श्रद्घा पूर्बक पूजा करनें वालों की स्थिति सात्विक, राजस एवं तामस में से कौन सी होती है ?
उत्तर में अध्याय - 17 के सभी अन्य 27 श्लोकों को देखना पडेगा।
अब एक बार अर्जुन की स्थिति को देखते हैं; अभी तक गीता में श्री कृष्ण के 556 श्लोकों में से 458 श्लोकों को
अर्जुन सुन चुके हैं लेकिन उनका मोह यथावत बना हुआ है । श्री कृष्ण सांख्य - योग के माध्यम से कर्म,
कर्म -योग, ज्ञान , कर्म-संन्यास , भोग, काम, क्रोध , लोभ, मोह, भय , अंहकार , बैराग्य तथा आत्मा-परमात्मा एवं प्रकृति- पुरूष सम्बन्ध - रहस्यों को स्पष्ट कर चुके हैं लेकिन उनका यह प्रयाश असफल होता दिख रहा है ।
चाह के साथ राम से जुड़ना और काम से जुड़ना एक सा है --यह बात मैं नहीं गीता बता रहा है ।
चाह के साथ राम से जुड़ना नासूर है और काम से जुड़ना एक मामूली सा जख्म है जिसका उपचार सम्भव है ,
आप पौराणिक कथाओं को देखें जीतनें भी महान असुर / दानव/ राक्षस हुए हैं वे सभी मुनियों के श्राप के कारण हैं । हमारे मुनि लोग बात-बात पर श्राप देते हुए दिखते हैं , यहाँ तक की अष्टाबक्र को भी श्राप देते बताया
गया है जो एक गुणातीत योगी हैं । त्रेता- युग एवं द्वापर- युग में जो कहानियां हैं उनसे मुनियों के श्रापों के
फलस्वरूप असुर/ दानव/ आदि हैं और उनको मुक्ति देनें के लिए श्री राम- श्री कृष्ण के अवतार हुए हैं ।
आप कहानियों को सुनते भर हैं कभी-कभी उन पर सोचा भी करिए ऐसा करना भी बुद्धि- योग है ।
श्राप क्या है ? क्रोध एवं अंहकार का मिश्रण , श्राप है । गीता [सूत्र - 3.37 ] कहता है ---काम का रूपांतरण
क्रोध है और करता - भाव [गीता-सूत्र 3.27 ] अंहकार की छाया है तथा अंहकार अपरा प्रकृति [गीता-सूत्र 7।4] के आठ तत्वों में एक तत्त्व है । गीता कहता है [ गीता-सूत्र 6।27, 2.52 ] -- राजस- तामस गुणों वाला परमत्मा से कभी जुड़ नहीं सकता और कथाओं में ऐसे लोगों को महान् तत्त्व -ग्यानी दिखाया जाता है । अवतारों से असुरों , राक्षसों एवं दानवों को तो मुक्ति मिल गयी लेकिन उनका क्या कसूर था जो उनके भोजन बन गए ।
अध्याय - 17 में श्री कृष्ण कहते हैं ----गुणों के आधार पर सात्विक , राजस एवं तामस तीन प्रकार के लोग हैं
इन सब का अपना-अपना यज्ञ , दान , तप , पूजा, प्रार्थना, भोजन तथा अन्य सभी गति बिधियाँ अलग-अलग होती हैं । अब आप गीता श्लोक 3.12, 4.12, 7.16, 9.25 को एक साथ देखें । यहाँ गीता कहता है -----अर्थाअर्थी , भय के कारण , जाननें के इक्षुक तथा तत्त्व ज्ञान से परमात्मा को तत्त्व से समझनें के लिए
चार प्रकार के लोग हैं । जो लोग भोग केंद्रित हैं वे देवताओं को पूजते हैं , भय वाले भूत-प्रेतों की पूजा करते हैं और राजस गुन धारियों में कुछ लोग यक्ष की पूजा करते हैं ।
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं ----जो चाह रहित स्थिति में मुझको याद करता रहता है वही मेरा परा भक्त है ।
परा भक्त के लिए परमात्मा निराकार नहीं रहता [गीता सूत्र 6।30,9।29,18।54,18।55 ] ।
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