हमारा वर्तमान

हमारा वर्तमान दो खूटियों पर लटक रहा है और ऐसे की स्थिति तनाव मुक्त कैसे रह सकती है ?
दो खूटियाँ क्या हैं ?
गीता कहता है ----कामना - मोह अज्ञान की जननीं हैं और करता भाव अहंकार की छाया है ....देखिये गीता सूत्र --
7.20, 18.72, 18..73 और 3.27
राजस-तामस गुणों का योग एवं अहंकार --ये दो खूटियाँ हैं जो मनुष्य के वर्तमान को लटका कर रखती हैं ।
मनुष्य का भूत कब और कैसे गुजर जाता है , पता नहीं लग पाता वर्तमान में जब आँखें खुलती हैं तब तक
दो खूटियों की तरंगे इन्द्रियों से बुद्धि तक भर चुकी होती हैं और मनुष्य अज्ञान में वही करता है जो भूत में
कर रहा होता है । सम्मोहित मनुष्य जिसके ऊपर राजस-तामस गुणों एवं अहंकार का सम्मोहन होता है , वह सोचता है ------
मैं दुनिया में सबसे ऊँचा ब्यक्ति हूँ , परमं ज्ञानी हूँ , लोग मेरे इशारों पर चलते हैं और ऐसा ब्यक्ति स्वयं
अपनीं पीठ रह - रह कर ठोकता रहता है । अज्ञान से भरा वर्तमान जिसके कण-कण से अहंकार एवं
गुणों की बूंदे टपक रही हों , वह तनाव मुक्त कैसे हो सकता है ?
अब देखते हैं वर्तमान की एक झलक ----------------------
[क] आज हम जिनके लिए संसार में इतना ब्यस्त हैं की माथे के पसीनें को भी पोछ्नें की सुध नहीं , वे धीरे-धीरे हमसे या हम उनसे इतनें दूर हो जाते हैं की एक दूसरे की आवाज भी नहीं सुन पाते । जब यह स्थिति आती है तब हम उनको दोषी मानते हैं जो अपनें प्यारे थे , अपनें को नहीं , ऐसा क्यों ?
[ख] हमारा स्वभाव ऐसा क्यों है की हम सब को अपने इशारे पर चलाना चाहते हैं ?
[ग] हम क्यों स्वयं को नहीं दूसरे को अपनें दुःख का कारण समझते हैं ?
[घ] हमारी निगाहें दूसरे पर हमेशा क्यों टिकी होती हैं ?
[च] गर्भ से आज तक हम अपनें बच्चे में जो चाहा वह भरा लेकिन जब बच्चा आज बड़ा हो कर हमारी सोच के अनुकूल फल नहीं दे रहा तो हम स्वयं को नहीं उसको क्यों दोषी बनाते हैं ?
[छ] हमें अपनें दुःख का कारण स्वयं में क्यों नहीं दिखता ?
भोग आधारित मनुष्य का वर्तमान भ्रम की बुनियाद पर होता है , भ्रम अर्थात वह जो हो न पर है , ऐसा
प्रतीत होता हो । गुणों एवं अहंकार की ऊर्जा का दूसरा नाम है विकार या वासना और यह उर्जा सत तक कैसे पहुंचनें दे सकती है ?
मनुष्य का वर्तमान सुख - सुरक्षा की खोज का है ; सुख के लिए परिवार बना कर प्यार के माध्यम से सुख
की चाह कहीं न कहीं गहराई में छिपी होती है और सुरक्षा के लिए महल का निर्माण किया जाता है तथा
धन को इकट्ठा किया जाता है । मनुष्य का वर्तमान इन दो की तलाश में कब और कैसे सरक जाता है , कुछ पता नहीं चल पता ।
यदि आप की उम्र 60 वर्ष से ऊपर की हो रही हो तो आप देखना की आज आप क्या प्यार को समझते हैं ? और
आज आप अपनें को कितना सुरक्क्षित पाते हैं ?
=====ॐ======

Comments

अगर मनुष्य को अपने दोषों का पता लग जाए तो फिर दोष रहेगा ही कहाँ !!! आपकी बातें अछि लगी !! जीवन का सार है !!! आप जैसे महानुभवों की सख्त आवश्यकता है हम जैसे खुले सांडों को!!! आभार!!!

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