वेद जिज्ञासा - 3 प्रभु की अनुभूति
प्रभु श्री कृष्ण गीता में अध्याय - 7 श्लोक - 16 में बता रहे हैं 03 प्रकार के लोग मुझसे जुड़ते हैं ; अर्थार्थी , आर्त और जिज्ञासु । अर्थार्थी अर्थात धन प्राप्ति की कामना वाले , आर्त अर्थात दुःख - संकट निवारण चाहनेवाले और तीसरे जिज्ञासु हिट हैं जो मुझे तत्त्व से समझना चाहते हैं । तत्त्व से प्रभु को समझना क्या है ?
प्रभु जैसा है उसे ठीक उसी तरह देखना और समझने वाले तत्त्व वित् होते हैं ।
चित्त जड़ तत्त्व है जिसे स्वयं का और और किसी का कोई पता नहीं लेकिन यह एक दर्पण जैसा है और चित्त रूपी दर्पण पर जो भी प्रतिविम्ब बनता है , पुरुष उसे वैसा ही समझता है ।
जब चित्त रिक्त और शून्यवस्था में आ जाता है , तब वहाँ जो भी होता है , उसे परमात्मा कहते हैं । काम चलाने के लिए हम ऐसा सोच सकते हैं ।
वैसे प्रभु की अनुभति मन , बुद्धि और अहँकार क्षेत्र से परे की है । योग में इस स्थिति को महाविदेहा की स्थिति कहते हैं ।
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