ऋग्वेद भाग - 2 , 3

 गायत्री जप करता जब सागर रूपी गायत्री में नमक के पुतले जैसे स्वयं के लिए गल जाय तब जपा गायत्री उसके लिए अजपा गायत्री बन जाती है । 

गायत्री - जाप चित्त को निरु भूमि में पहुँचाता है जो एकाग्रता के माध्यम से समाधि में ले जाता है ।

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