बिषय एवं इंद्रिय ध्यान

गीता श्लोक –2.60

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः /

इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः //

आसक्त प्रथम स्वभाववाली इन्द्रियाँ मन को गुलाम बना कर रखती हैं

[ Impetuous senses carry of mind by force ]

गीता श्लोक –2.67

इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते /

तदस्य हरन्ति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि //

जैसे जल में चल रही नाव को वायु हर लेती है वैसे ही बिषय से असक्त एक इंद्रिय प्रज्ञा को हर लेती है/

[ When mind runs after roving senses , carries away the Pragya [ correct understanding ] ]

गीता-तत्त्व श्रंखला में कामना क्रोध एवं अहँकार के सम्बन्ध में आज हम गीता के दो और सूत्रों को देखे,अब हमें इन दो सूत्रों को अपनें ध्यान में उतारना चाहिए/गीता में प्रभु श्री कृष्ण महाभारत युद्ध के माध्यम से अर्जुन के कर्म – मार्ग की दिशा को कुछ इस प्रकार से बदलनें की कोशिश कर रहे हैं जिससे वह भोग से सीधे योग में पहुँच कर वैराज्ञ की अनुभूति के माध्यम से परम गति की ओर चल पड़े/

बिषय से इंद्रिय नियोजन

इंद्रिय नियोजन से मन नियोजन

मन नियोजन से बुद्धि नियोजन

और

बुद्धि नियोजन से प्रज्ञा में पहुँचना ही ध्यान है //


===== ओम्======


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