गीता तत्त्वों में कामना क्रोध अहंकार अगला सोपान
कामना क्रोध एवं अहंकार[ Desire , anger and ego – self sense ]
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गीता श्लोक –7.27
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वंद्वमोहेन भारत /
सर्वभूतानि सम्मोहम् सर्गे यान्ति परंतप //
इच्छा , द्वेष , द्वंद्व एवं मोह अज्ञान के लक्षण हैं
desire , aversion , sense of dispute and delusion all these are the symptoms of ignorance [ Agyaana ]
ऊपर के सूत्र में प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं-----
कामना [ इच्छा ] द्वेष , द्वंद्व एवं मोह से सभीं जीव सम्मोहित हैं और राजस – तामस गुणों के ये तत्त्व अज्ञान की पहचान हैं /
क्या है अज्ञान?और क्या है ज्ञान?
गीता सूत्र – 13.2 में प्रभु कहते हैं -----
जो क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ एवं प्रकृति-पुरुष का बोध कराए वह है ज्ञान बाकी सभी अज्ञान हैं//
Through Git – Sutra 13.2 Lord Krishna says …..
The awareness of knowable , unknown , the existence and its creator is wisdom [ gyaana ] .
एक बात आप अपनी स्मृति में बैठा लें कि …...
गीता भक्ति मार्ग का श्रोत न तो है और न ही बन सकता है
गीता बुद्धि - योग का मार्ग है और -----
ऐसे लोग जिनका केन्द्र तर्क – वितर्क [ logic ] है , गीता उनकी मदद करता है /
बुद्धि योग एवं भक्ति में क्या संबंध है ?
बुद्धि - योग का फल है , परा भक्ति ; जब बुद्धि सोच – सोच कर थक कर विश्राम करनें लगती है तब भक्ति की एक किरण दिखती है स्वप्नवत , जो परा - भक्ति के द्वार को खोलती है और तब … ...
आइन्स्टाइन जैसे बुद्धि केंद्रित वैज्ञानिक बोल उठता है ----- E = M[CxC]
===== ओम्======
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