गीता के अनमोल सूत्र
Gita श्लोक –2.56
दु:खेष्वनुद्विग्नमना:सुखेषु विगतस्पृह: /
वीतरागभयक्रोध:स्थितिधीर्मुनिरुच्यते//
शब्दार्थ … ....
दुःख मिलनें पर जिसके मन में उद्वेग न उठे,सुख की प्राप्ति में जो निः स्पृह रहे तथा जिसके राग भय एवं क्रोध समाप्त हो चुके हों वह स्थिर प्रज्ञ मुनि होता है/
ध्यानार्थ … ...
राग,भय एवं क्रोध की ऊर्जा जिसमें रूपांतरित हो कर समभाव में बदल गयी हो वह स्थिर प्रज्ञ है//
Steadfast devotee is always free from the gravity of lust , clinging and anger . He always remains in evenness – yoga .
गीता श्लोक –4.10
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिता: /
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागता: //
शब्दार्थ … ...
वे जो राग , भा एवं क्रोध रहित होते हैं वे प्रेममय मुझमे स्थित रहते हैं और ऐसे योगी ज्ञान तप के माध्यम से मुझे प्राप्त कर लेते हैं /
ध्यानार्थ … ...
राग,भय एवं क्रोध[राजस – तामस गुण तत्त्व]से अछूता योगी ज्ञान के माध्यम से मुझ में स्थित रहता है/
He who is free from lust [ passion – mode ] , clinging [ delusion – mode ] and anger [ anger is an element of Apara Prakriti ] is a man of wisdom and he understands Me as I am .
गीता के दो सूत्र एक अध्याय दो का तथा एक अध्याय चार का जब आप इला कर देखते हैं तब आप को जो सूत्र मिलता है वह इस प्रकार से होता है --------
राग,भय एवं क्रोध जिसको छू न सकें वह योगी प्रभु को तत्त्व से समझता हुआ ज्ञानी-समभाव योगी होता है//
When you meditate on these two shlokas you get the following formula ------
A man of wisdom is a man of evenness – yoga who is always free from lust , clinging [ delusion ] and anger .
====ओम्========
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