गीता तत्त्वों को समझो
गीता श्लोक –5.23
शक्नोतीहैव य : सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् /
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त : स सुखी नरः //
" काम – क्रोध के वेग को सहन करनें वाला ब्यक्ति सुखी रहता हा और योगी होता है "
He who keep himself beyond the influence of sex and anger , is yogin and happy man
गीता का यह श्लोक यहाँ कामना , क्रोध एवं अहंकार गीता तत्त्वों को स्पष्ट करनें के सन्दर्भ में दिया जा रहा है / गीता के मुख्य तत्त्व हैं - आत्मा , परमात्मा , आसक्ति , कामना क्रोध , लोभ , कम , मोह , भय , आलस्य एवं अहंकार और अभीं हम आसक्ति कामना क्रोध एवं अहंकार को एक साथ समझ रहे हैं /
गीता श्लोक – 5.23 के साथ आप यदि श्लोक – 3.37 , 5.28 , 16.21 को भी देखें तो श्लोक – 5.23 में कही गयी बात और स्पष्ट हो सकती है , आइये इन श्लोकों के सारांश को देखते हैं -----
श्लोक –3.37
यह श्लोक कह रहा है - काम एषः क्रोध एषः रजोगुणसमुद्भवः अर्थात काम का रूपांतरण क्रोध है और काम राजस गुण का मुख्य तत्त्व है /
श्लोक –5.28
यह श्लोक कह रहा है - विगत इच्छा भय क्रोध : य : सदा मुक्त एव सः अर्थात चाह , भय एवं क्रोध रहित ब्यक्ति सदा मुक्त ब्यक्ति होता है /
श्लोक –16.21
यहाँ गीता में प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं - काम , क्रोध एवं लोभ तीन नरक के द्वार हैं /
आसक्ति , कामना , काम , क्रोध एवं लोभ ये तत्त्व हैं राजस गुण के और राजस् गुण भोग की ओर आकर्षित करता है [ attachment , desire , sex and anger these are the elements of passion mode ]
=====ओम्======
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