कामना क्रोध अहँकार एवं गीता
गीता सूत्र –18.17
यस्य नाहङ्कृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते /
हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते //
वह जिसमें कर्ता भाव की सोच नहीं है , जिसकी बुद्धि सांसारिक पदार्थों एवं कर्मों के बंधनों से मुक्त है , वह ब्यक्ति सब लोकों का हनन करने के बाद भी मारनें के पापों से मुक्त होता है
He who does not have self sense and whose intelligence is free from passion , he is a liberated man .
गीता सूत्र – 3.27
प्रकृते : क्रियमाणानि गुणै : कर्माणि सर्वशः /
अहँकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते //
कर्म कर्ता गुण हैं और मैं कर्ता हूँ की सोच अहँकार की छाया है
Actions are performed by the three natural modes , man is not the performer but he who has the feeling that he is the actual doer , his feeling is due to his self sense – energy .
ऊपर यहाँ गीता के दो सूत्र दिए गए जिनका सम्बन्ध कर्म , अहँकार , गुण एवं बुद्धि समीकरण से है / गीता कर्म – योग की गणित बताता है और यह भी कहता है - तुम यह न सोचो की जो कर्म तुमसे हो रहा है वह तुम कर रहे हो , तुम तो यंत्रवत हो जिसको तीन गुणों में से किसी एक की ऊर्जा चला रही है अतः तुम इस रहस्य को समझ कर स्वयं को कर्ता न समझ कर द्रष्टा समझनें का अभ्यास करो और तब तुम किसी घडी वैराग्य में पहुँच कर संसार में ब्याप्त तीन गुणों से निमित माया का भी द्रष्टा बन जाओगे और तब तेरी यात्रा स्वतः परम गति की ओर हो जायेगी /
===== ओम्========
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