गीता तत्त्वों में मोह - ज्ञान


गीता श्लोक –10.3

यः माम् आजम् अनादिम् च वेत्ति लोकमहेश्वरम्/

असम्मूढ::मत्येर्षु सर्वपापै:प्रमुच्यते//

जो मुझको अजन्मा अनादि और लोकों का सर्वश्रेष्ठ ईश्वर के रूप में तत्त्व से जानता है वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त ज्ञानी होता है

Those who understand Me unborn , limitless and as the Supreme One in the universe , they are man of wisdom and are not touched by sins .

गीता श्लोक –14.17

सत्त्वात् संजायते ज्ञानं रजसः लोभः एव च/

प्रमादमोहौ तमस:भवतः अज्ञानं एव च//

सतगुण के ज्ञान,रजो गुण से लोभ एवं तमस गुण से प्रमाद – मोह उत्पन्न होता है

Goodness mode is for wisdom [ pure knowledge ] , greed is the element of passion mode and delusion comes from dullness mode .

गीता श्लोक –14.5

सत्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवा: /

निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनं अब्ययम्//

सात्विक राजस एवं तामस तीन गुण देह में अब्यय को रोक कर रखते हैं/

Three natural modes keep the unchanging One [ Soul ] in the physical bodies .

गीता के तीन श्लोक आप को सात्विक , राजस् एवं तमस तीन गुणों के तत्त्वों को स्पष्ट करते हैं और कहते हैं ------

तीन गुण आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं

और

प्रभु को तत्त्व से समझनें वाला ज्ञानी होता है //


===== ओम्======


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