गीता संकेत भाग सात
गीता संकेत –07
गीता सूत्र –7.29
जरा मरण मोक्षाय माम् आश्रित्य यतन्ति ये /
ते ब्रह्म तत् विदु : कृत्स्त्रम् अध्यात्मम् कर्म अखिलम् //
वह जो बृद्धावस्था,मृत्यु एवं मोक्ष के लिए यत्नशील हैं,वे बुद्धिमान ब्यक्ति मेरी शरण में आते हैं,ऐसे ब्यक्ति अध्यात्म कर्मों को एवं ब्रह्म को समझते हैं/
Those who take refuge in Me and strive for deliverance from old age and death they know the Brahman and the Adhyam – Actions .
गीता सूत्र – 7.29 का जो भाव ऊपर प्रस्तुत किया गया है वह मेरा नहीं उन लोगों का है जो गीत के सूत्रों पर अपना मत ब्यक्त किये हैं और लोगों द्वारा पूज्य हैं /
अब आप मेरा भावार्थ भी देखें------
प्रभु श्री कृष्ण एक सांख्य – योगी के रूप में अर्जुन को बता रहे हैंकि … ......
वह जो मेरी शरण को स्वीकारा है
वह बृद्धावस्था,मृत्यु से भयभीत नहीं होता
और
मोक्ष से आकर्षित भी नहीं होता
तथा
जो
अध्यात्म एवं अध्यात्म के मध्यम से ब्रह्म को समझता है//
वह मन – बुद्धि जिनमें बंधन ही बंधन भरे हों उसमें प्रभु कैसे समा सकते हैं ? गीता में प्रभु यह भी कहते हैं ----
भोग – भाव एवं भगवान की श्रद्धा दोनों एक साथ एक समय एक मन – बुद्धि में नहीं रहते और गीता यह भी कहता है कि मोह के साथ बैराज्ञ में उतरना संभव नहीं और बिना वैराज्ञ बरह की अनुभूति होनी संभव नहीं / रिक्त मन – बुद्धि ब्रह्म – द्वार को देखते हैं //
======ओम======
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