गीता संकेत भाग पांच
गीता संकेत – 05
गीता सूत्र –12.6 , 12.7
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संयस्य मत्-परा: /
अनन्येन एव योगेन माम् ध्यायंत:उपासते//
तेषाम् अहम् समुद्धर्ता मृत्यु संसार सागारात्/
भवामि न चिरात् पार्थ मयि आवेशित चेतासाम//
प्रभु का परा भक्त जो भी करता है,प्रभु के लिए करता है …..
और पराभक्त आवागमन से मुक्त हो जाता है//
Those who are in unswerving devotion , their all actions ; meditation and worships are always for the Supreme One and such Bhaktas get liberation from the time – cycle [ birth , life and death ] .
मनुष्य बार – बार जन्म लेता है , जीता है , मर ता है और पुन : जन्म लेता है , आखिर यह आवागमन का चक्र क्यों है और इस चक्र का केंद्र क्या है ?
मन , मन है इस आवागमन चक्र का केन्द्र ; मन गुण तत्त्वों का गर्भ है और गुण तत्त्व ऎसी मादक मदिरा हैं जो मनुष्य की चेतना को बाहर झाकनें भी नहीं देते / वह ब्यक्ति जो इस सोच पर रुक गया कि आखिर हम बार – बार क्यों आते हैं और क्या जो हम कर रहे हैं यही करनें के लिए हमें बार – बार आना पड़ता है ? वह परा भक्त बन जाता हैऔर उसे वह परम सत्य दिखनें लगता है जिसके लिएगीता कहता है ------
नासतो विद्यते भावो ….
नाभावो विद्यते सत: /
गीता- 2.16
अतृप्त कामना मन के माध्यम से आत्मा को नया देह धारण करने के लिए बाध्य करती है/ बेहोश ब्यक्ति का मन गुण तत्त्वों का गुलाम होता है
और
वह जिसका मन कर्ता नहीं अपनें को द्रष्टा समझता है
वह ब्यक्ति परा भक्त हो गया होता है//
=====ओम=======
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