गीता संकेत भाग छः
गीता सूत्र –2.42 , 2.43 , 2.44 , 2.45
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्ति अविपश्चितः/
वेदवादरता:पार्थ न अन्यत् अस्ति इति वादिनः//गीता2.42
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्/
क्रियाविशेष बहुलाम् भोग ऐश्वर्य गतिम् प्रति//गीता2.43
भोग ऐश्वर्य प्रसक्तानाम् तया अपहृत – चेतासाम्/
ब्यवसाय – आत्मिका:बुद्धिः समाधौ न बिधीयते//गीता2.44
त्रै-गुण्य विषया:वेदाः निः त्रै गुण्य:भव अर्जुन/
निः द्वन्द्वः नित्य – सत्त्व – स्थ:निः योग – क्षेम:आत्मवान्//गीता2.45
ऊपर दिए गए सूत्रों में झाँकनें से पूर्व पहले गीता सूत्र – 10.35 का यह अंश देखते हैं -----
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छंदसामहम्/
अर्थात
सामवेद में बृहत्साम गीत मैं हूँ और छंदों में गायत्री मैं हूँ , यह बात प्र भु श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं , अब आगे --------
गीता सूत्र –2.42 , 2.43
यहाँ प्रभु कह रहे हैं … ....
अज्ञानी लोग वेदों के उन सन्दर्भों से अधिक आकर्षित होते हैं जो स्वर्ग प्राप्ति को परम लक्ष्य बताते हैं एवं अच्छे जन्म की प्राप्ति के उपाय बताते हैं तथा भोग प्राप्ति के नाना प्रकार के उपायों को बताते हैं / वेदों में ऐश्वर्य जीवन प्राप्त करनें के भी उपायों को बताया गया है एवं कामना पूर्ति के भी उपायों पर बाते हैं जिनसे अज्ञानी लोग आकर्षित होते हैं और इन्द्रिय भोग को परम समझ कर परमात्मा को भी भोग प्राप्ति के माध्यम के रूप में प्रयोग करना चाहते हैं -------
गीता सूत्र – 2.44 , 2.45
इन्द्रिय भोग का सम्मोहन ऐसा है कि लोग भोग को भगवान से ऊपर समझनें लगते है लेकिन हे अर्जुन!तुम इन्द्रिय भोगों से परे देखनें की कोशिश करो/वेदों में इन्द्रिय भोगों का वर्णन है जो प्रकृति के तीन गुणों से हैं,और तुमको इनसे ऊपर उठना है,भोग से परे पहुँचो,सभीं द्वैत्यों को समझो और गुण तत्त्वों के सम्मोहन से परे पहुँचो तब तुम मुझे समझ सकते हो//
======ओम=========
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