गीता संकेत भाग एक
गीता सूत्र –8.6
यं यं वा अपि स्मरन् भावं त्यजति अन्ते कलेवरम्/
तम् तम् एव एति कौन्तेय तत् भाव भावित: //
प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं ….....
हे अर्जुन!मृत्यु के समय मनुष्य जिस भाव में रहता है मृत्यु के बाद का उसका जन्म उस भाव की प्राप्ति के लिए होता है//
Lord Krishna says ------
The Supreme Soul goes to that on which its mind remains set at the last moments .
पिछले अंक में हमनें देखा जहां प्रभु कहते हैं ….....
आखिरी श्वास भरते समय जो मुझे अपनी स्मृति में रखता है वह मुझे प्राप्त करता है और यहाँ कह रहे हैं , अंत समय मन किस केन्द्र पर स्थिर रहता है उस ब्यक्ति का अगला जीवन भी उसी केंद्र पर केंद्रित रहता है /
अब इस सूत्र के सम्बन्ध में कुछ सोचते हैं -------
चाहे कोई जाति का ब्यक्ति मरे उसे नहलाया जरुर जाता है दफनानें या जलाने के पहले /
चाहे किसी जाती या धर्म का ब्यक्ति मरे , मरे हुए ब्यक्ति के साथ कुछ सुगन्धित चीजों को जरुर रखते हैं या जलाते हैं /
हिंदू लोग चन्दन या धुप का प्रयोग करते हैं /
यहाँ कुछ बातें बताई गयी जिसके बारे में आप सोचना/मरनें वालों में से लगभग99.55 %लोग मरते समय काम केंद्र पर होते हैं या नाभी केंद्र पर केंद्रित होते हैं,इस बात को समझते हैं--------
ऐसे लोग जिनका केंद्र काम रहता है और उस भाव दशा में प्राण निकल जाता है उनकी आँखें मरते समय बंद रहती हैं और उनका प्राण उनके जनन इन्द्रिय से निकलता है/ऐसे लोग जिनका प्रभावी केन्द्र नाभि होता है उनका प्राण भय या मोह भाव में निकलता है,उनकी आँखे मरते समय भनानक मुद्रा में खुली रहती हैं/मरे हुए की आँखों की मुद्रा को देख कर यह कहा जा सकता है कि इसका प्राण किस केंद्र से निकला है/मोह या भाई में जिनका प्राण निकलता है उनका मूत्र या मल प्राण के साथ बाहर निकल जाता है/राजस एवं तामस गुणों के प्रभाव में जो मरते हैं उनको जलानें या दफनानें से पहले नहलाना जरुरी होता है लेकिन जिनका प्राण सात्त्विक गुण में निकलता है उनका शरीर पवित्र रहता है लेकिन ऐसे लोग दुर्लभ होते हैं//
=====ओम=====
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