गीता संकेत चार


गीता सूत्र –15.8




शरीरं यत् अवाप्नोती


यत् च अपि उत्क्रामति ईश्वरः /


गृहीत्वा एतानि संयामी


वायु : गंधान् इव आशयत् //




जैसे वायु गंध को अपनें साथ रखती है वैसे आत्मा मन – इन्द्रियों को अपनें साथ रखता है //




when Jiivaatma [ The Supreme Soul ] leaves the physical body It carries mind ans the senses as the wind carries perfumes from their places .




गीता में प्रभ श्री कृष्ण का यह सूत्र जन्म – जीवन – मृत्यु-जन्म चक्र सिद्धांत का बुनियाद है/


अकर्ता आत्मा जीवन – ऊर्जा का श्रोत है , प्रभु का अंश है और मन का गुलाम भी है /


मन क्या है?


मन देह में वह ब्यवस्था है जो मनुष्य के सही - गलत सभीं कृत्यों के अनुभव का संग्रह करता रहता है और जिस समय जो अनुभव प्रभावी होता है मनुष्य उस समय वैसा ही कर्म करता है / आत्मा जब देह छोड़ता है तब इसके स्वचालित पंख [ मन ] इसे भ्रमण कराता रहता है जबतक कि मन को यथा उचित गर्भ नहीं मिलता और जब यथोचित गर्भ दिखनें लगत है तब आत्मा को साथ ले कर उस गर्भ में प्रवेश कर जाता है / स्त्री - पुरुष गर्भ के लिए जब आपस में मिलते हों उस समय उन दोनों की मनोदशा अपनें अनुकूल यथा उचित आत्मा को गर्भ में आनें को आकर्षित करती है / काम मनोरंजन का साधन नहीं लेकिन परम मनोरंजन का साधन सा दिखता जरुर है और यही काम का सम्मोहन मनुष्य को बार – बार जन्म लेनें के लिए बाध्य करता रहता है //




=====ओम======


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