गीता मूल मन्त्र
जहाँ हो उसे समझो
यह समझ है कर्म की जो हर पल हमसे जुड़ा हुआ है //
गीता कहता है --------
कर्म मे उपजा होश कर्म – योग है
कर्म योग का होश ज्ञान है
ज्ञान वैराज्ञ का द्वार है
वैराज्ञ में कर्म संन्यास घटित होता है
कर्म संन्यास में …..
कर्म अकर्म की तरह एवं अकर्म कर्म की तरह दिखते हैं
और यह स्थिति -----
निर्वाण मे पहुंचाती है //
और आप क्या जानना चाहते हैं ….
जानते तो सब कुछ हो और जो जानते हो उसे समझो //
==== ओम =====
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