गीता के 116सूत्र
इस श्रंखला के अंतर्गत कुछ और सूत्र … ....
सूत्र 6.1
संन्यासी / योगी कर्म बंधनों से मुक्त रहता है //
सूत्र 4 . 35
ज्ञानी मोहित नहीं होता सूत्र 4.37 //
सूत्र 6 . 2
योगी एवं संन्यासी कोई अलग – अलग नहीं दोनों शब्द एक दूसरे के संबोधन हैं //
ज्ञानी कर्म – फल के सम्बन्ध में नहीं सोचता //
सूत्र 6 . 3
कर्म तो हर पल सब कर रहे हैं लेकिन उनमें कितनें अपनें कर्म को योग बना कर योगारूढ़
की स्थिति पाते हैं ?
गीता के छोटे-छोटे सूत्र आप को दिए जा रहे हैं इस उम्मीद से कि ….......
आप अपनें दैनिक जीवन में इनका प्रयोग करें …..
आप इनके रस के स्वाद को समझे …..
आप इनको अपनाएं …...
और
इनको जीवन की सीढ़ी बना कर परम धाम की यात्रा करें//
जीवन में एक बात पर होश रखना------
राह का पत्थर एक दिन ….
सीढी बन कर आगे की यात्रा कराता है//
अपनें कर्मों में सत्य को समझना ही ….
कर्म – योग है//
=====ओम======
Comments