गीता के
116परम सूत्र
अगले कुछ सूत्र
गीता- 18.2
कर्म – फल सोच रहित कर्म संन्यासी के होते हैं//
action without result – expectations is the action of Yogins .
गीता- 16.21
काम,क्रोध एवं लोभ नर्क के द्वार हैं//
sexual desire , lust , anger and greed these are the doors of Hell .
गीता- 18.54
कामना रहित एवं समभाव का आयाम परा भक्ति का आयाम है//
the space which develops within the mind and intelligence net – work by doing work
without attachment , desire and in evenness state is the space of unswerving devotion where
Brahman does not remain a mystery .
गीता- 18.55
परा भक्त मुझे तत्त्व से समझता है//
Yogin fully merged into Me understands Me as I am .
भोग – तत्त्वों का बोध उस आयाम मे पहुंचाता है …..
जहाँ सब कुछ
परमात्मा से परमात्मा में दिखानें लगता है//
जहाँ दो नहीं एक रहता है और वह ….
परमात्मा होता है//
जहाँ देखनें वाला और दिखनें वाला सब ….
परमात्मा होते हैं//
=====ओम======
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