गीता मर्म - 31


गीता के दो सूत्र :------
[क] सूत्र - 7.11
रागरहित शास्त्र के अनुकूल , काम , मैं हूँ ॥
[ख] सूत्र - 10.28
संतान उत्पत्ति का कारण , कामदेव , मैं हूँ ॥

काम और काम देव , मैं हूँ , ऎसी बात श्री कृष्ण जैसा योगिराज ही कह सकता है ।
श्री कृष्ण की इन बातों को
हम कुछ समझनें की कोशिश करते हैं , यद्यपि है कठिन , क्यों की :----
श्री कृष्ण की बातों को वह समझता है जिसमें उनकी ऊर्जा ऊर्जा बह रही हो ,
हम तो भोगी ब्यक्ति हैं ।
दरिया बहती है - ऊपर से नीचे की ओर और ऊर्जा बहती है अधिक बोल्टेज से कम बोल्टेज की ओर ।
तरल के बहाव के लिए स्लोप चाहिए और ऊर्जा - बहाव के लिए चाहिए - पोटेंसिअल डिफ़रेंस।
ऊपर के सूत्रों में प्रभु कहते हैं -- काम और काम देव , मैं हूँ ,
यहाँ काम है ऊर्जा या दरिया के बहनें की ऊर्जा
और कामदेव है स्लोप एवं पोटेंसिअल डिफ़रेंस ।
काम को जब काम देव मिलते हैं तब काम ऊर्जा दो दिशाओं में से किसी एक की ओर बह सकती है ;
नीचे से ऊपर की ओर या ऊपर से नीचे की ओर ।
काम देव प्रकृति की चाह है अर्थात संतान उत्पत्ति के लिए काम ऊर्जा को ऊपर से नीचे की ओर
बहानें का माध्यम और जब यह काम हो जाता है तब कामदेव शरीर से बाहर निकल जाता है
और काम ऊर्जा पोटेंसिअल ऊर्जा की तरह शरीर में रहती है ।
जब काम को राग मिलती है तब वह काम जो प्रभु को दिखानें की
पोटेंसिअल ऊर्जा है , काइनेटिक ऊर्जा में बदल जाती है , इसका रुख ऊपर की ओर से नीचे की ओर हो जाता है और इस प्रक्रिया में काम मनोरंजन का साधन बन कर नरक की ओर खीचनें लगता है ।
काम से राम और .....
काम से नरक की यात्राओं में केवल राग का फर्क है ; काम जब राग के प्रभाव में होता है
तब यात्रा का रुख होता है - नरक की ओर और जब राग नहीं होती तब रुख होता है राम की ओर ।
याद रखना :------
गुणों के प्रभाव में काम , एक बासना है और ......
गुणों से अप्रभावित काम , प्रभु का द्वार खोल सकता है ........

===== ॐ ======

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