गीता अध्याय - 13 भाग - 06

ज्ञान और ज्ञानी 


सम्बंधित गीता श्लोक :
13.2 , 13.7 - 13.11 तक 

सूत्र - 13.2 
प्रभु कह रहे हैं :
क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है , ऐसा मेरा मत है 

और ज्ञानी के सम्बन्ध में प्रभु कह रहे हैं :
गीता श्लोक - 13.7 - 13.11 तक 

अभिमान , दंभ , का अभाव , अहिंसा शांति , मन - वाणी से सरलता , बाहर - भीतर की शुद्धि , अन्तः करण की स्थिरता , इंद्रिय - मन निग्रह ....
वैराज्ञ की ऊर्जा से परिपूर्ण , जन्म - जीवन , ज़रा का बोध , ......
तन , मन से परिवार , धन से अनासक्त रहना , ममता का अभाव , समभाव में रहना ......
मुझ परमेश्वर में अब्यभिचारिणी भक्ति का होना , एकांत में रहनें वाला , किसी से लगाव का न होना .....
अध्यात्म - ज्ञान में डूबे रहना , तत्त्व - ज्ञान से परमात्मा को देखना .....
यह सब ज्ञानी के लक्षण हैं //

अब गीता की बात को अन्तः करण में बैठाने का काम करते हैं - - - - - -- - -

क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध तो ज्ञान है लेकिन क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध किसे होता है ?

क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ  का बोधी वह है जो .....
तीन गुण ; सात्त्विक , राजस एवं तामस के तत्त्वों जैसे .....
आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ , मोह - ममता , अहँकार , भय से अप्रभावित हो , और ....
जो इनसे अप्रभावित होता है , वह ....
समभाव में रहता है ----
एकांतवासी होता है -----
वह सम्पूर्ण जगत को एक के फैलाव स्वरुप देखता है ----
वह आत्मा से आत्मा स्थित रहता है , और ----
वह आत्मा के माध्यम से परमात्मा झांकता हुआ परमानंद में डूबा रहता है , और ---
वह गुणों को कर्ता और स्वयं को द्रष्टा रूप में देखता है // 


===== ओम् ======

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