गीता अध्याय 13 भाग - 03

क्षेत्र की रचना 

श्लोक - 13. 5 - 13.6 

महाभूतानि अहंकार : बुद्धिः अब्यक्तम् एव च 
इन्द्रियाणि दश एकम् च पञ्च च इंद्रियगोचरा :

इच्छा द्वेष : सुखं दुःखम् संघात : चेतना धृतिः 
एतत् क्षेत्रं समासेन सविकारम् उदाहृतम् 

पञ्च महाभूत , अहँकार , बुद्धि , अब्यक्त , 11 इन्द्रियाँ [ पञ्च ज्ञान + पञ्च कर्म एवं एक मन ] , पञ्च इंद्रिय बिषय , इच्छा , द्वेष , सुख - दुःख , स्थूल देह का पिण्ड , चेतना , धृति इस प्रकार इन तत्त्वों से  सविकार क्षेत्र की रचना है /
मनुष्य एवं अन्य जीव धारी [ सभीं भूत ] का ब्यक्त शरीर [ क्षेत्र ]  निम्न तत्त्वों के योग से हैं :------
05 महाभूत [ पृथ्वी , वायु , अग्नि , जल , आकाश ] 
10 इन्द्रियाँ 
04 मन , बुद्धि , अहँकार , धृति 
01 चेतना 
01 अब्यक्त 
 +   सभीं तरह के विकार
21 तत्त्वों एवं विकारों से हम हैं ; यह सांख्य - योग का समीकरण प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं / 
भूतों के क्षेत्र - रचना के सम्बन्ध में अप यहाँ गीता के दो सूत्रों को देखा लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं होती , इस सम्बन्ध में गीता के कुछ और सूत्रों को हम आगे चल कर देखेंगें जैसे -----
सूत्र - 7.4 - 7.6 , 13. 20 - 13.22 , 9.10 , 14.3 - 14.4 एवं कुछ और सूत्र /

आज आप यहाँ धृति , चेतना और अब्यक्त के ऊपर ध्यान करें , अगले अंक में हम इनको बुद्धि स्तर पर समझनें की नाकामयाब कोशिश करेंगें //

==== ओम् -------








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