गीता अध्याय - 13 भाग - 05
जीव रचना का अगला भाग
गीता में जीव रचना से सम्बंधित निम्न सूत्रों को देखा जा सकता है :सूत्र - 7.4 - 7.6 , 9.10 , 13.5 - 13.6 , 13.20 - 13,22 , 14.3 - 14.4
अब हम देखनें जा रहे हैं सूत्र - 14.3 - 14.4
मम योनिः महत् ब्रह्म तस्मिन् गर्भम् दधामि अहम् /
संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत /
सर्व योनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः /
तासां ब्रह्म महत् योनिः अहम् बीजप्रदः पिता //
प्रभु कह रहे हैं :
सभी योनियों से जो जीव उत्पन्न होते हैं उनका पिता की भांति बीज स्थापित करनें वाला मैं हूँ और जहाँ बीज स्थापित होता है वह योनि का माध्यम जो गर्भ को धारण करताहै , ब्रह्म है /
जीव रचना सम्बंधित हम गीता के 11 श्लोकों को देख रहे हैं और अब समय आ गया है कि हम इन सभी श्लोकों के सारांश को यहाँ देखें /
प्रकृति , पुरुष , क्षेत्र , क्षेत्रज्ञ , कार्य , करण , ब्रह्म एवं प्रभु श्री कृष्ण इन शब्दों के माध्यम से गीता के 11 श्लोक हमें जीव - रचना का विज्ञान देते हैं जो इस प्रकार से समझा जा सकता है :----
- जीव दो के योग का परिणाम है
- क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ , ये तो तत्त्व जीव निर्माण के श्रोत हैं
- क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ से है , बिना क्षेत्रज्ञ क्षेत्र का अपना कोई अस्तित्त्व नहीं
- क्षेत्र निर्विकार हो नहीं सकता और क्षेत्रज्ञ कभी विकार युक्त नहीं हो सकता
- अपरा एवं परा प्रकृति के नौ तत्त्वों से जीव हैं [ पञ्च महाभूत , मन - बुद्धि , अहंकार , ये आठ तात्व हैं आपरा प्रक्रति के और परा है चेतना ]
- मन के फैलाव स्वरुप दश इन्द्रियाँ है , पांच बिषय हैं और सभीं प्रकार के विकार एवं द्वैत्य है
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