गीता के एक सौ सोलह सूत्र
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गीता सूत्र –2.48
योगस्थ:कुरु कर्माणि
संग ब्यक्त्वा धनञ्जय/
सिद्धि-असिद्धयो:सम:भूत्वा
समत्व योग:उच्यते//
जय – पराजय,सिद्धि-असिद्धि की सोच जिस कर्म में न हो …..
वह कर्म-----
समत्व – योग कहलाता है//
Action done with an even mind having no attachment and expections
is called Evenness – Yoga .
What is samatvam ?
It is a status of mind – intelligence frame where both are not taking part in
the action but they remain just witnessers .
गीता मे प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं …....
जो कर्म तुमसे हो रहा है उस कर्म का कर्ता तुम नहीं हो,कर्म कर्ता तो गुण समीकरण है
जो तेरे अंदर है,तूं तो मात्र एक यंत्र की भाँती हो जिस से कर्म हो रहा है/
जिस वक्त तेरे अंदर यह बात बैठ जायेगी उस घडी तूं समत्व – योग मे होगा//
समत्व-योग प्रभु के आयाम में पहुंचनें का पहला खुला द्वार है//
पढ़ना आसान,बोलना आसान,लिखना आसान लेकिन इस स्थिति में पहुँचना---- ?
=====ओम=======
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