गीता - यात्रा
** इन्द्रियों से मित्रवत ब्यवहार ......
** इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण .......
** मन में प्रभु रस के अलावा और कोई रस का न होना .........
** निर्विवाद , अहंकार रहित और भ्रम रहित बुद्धि का होना ......
** सभी द्वंदों से अप्रभावित रहना ......
** सभीं गुण - तत्वों [ भोग तत्त्वों ] को समझ कर उनसे अप्रभावित रहना .....
** कर्म में अकर्म का दिखाई पड़ना .....
** अकर्म में कर्म करनें जैसा भाव का होना ......
** सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सूचनाओं में प्रभु की झलक को पाना ......
प्रभु से ----
प्रभु में -----
हर पल बसे रहना ......
किसी को भी ......
गीता - योगी बनाता है ॥
==== ॐ ======
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