गीता की यात्रा
भाग - 07
न अन्यं गुणेभ्यः कर्तारं
यदा द्रष्टा अनुपश्यति ।
गुणेभ्यः च परम वेत्ति
मत भावं स : अधिगच्छति ॥
गीता श्लोक - 14.19
प्रभु कह रहे हैं :
जो गुणों के अलावा और किसी को करता नहीं देखता .....
जिसका ....
तन , मन और बुद्धि भावातीत की स्थिति में रहते हों .....
रिक्त मन - बुद्धिवाला वह योगी .....
द्रष्टा होता है ...
और ...
वह मेरे स्वभाव को समझता है ॥
आप दो घड़ी यहीं रुक कर इस सूत्र के बारे में सोचें -----
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यह स्थिति है उस समय की जब ...
मन - बुद्धि में प्रभु के अलावा और कुछ न हो .....
जिसके पीठ के पीछे भोग हो
और आँखों में प्रभु बसे हों ....
जिसकी हर श्वास प्रभु से परिपूर्ण हो .....
और जो ......
इस भोग संसार में ,
प्रभु का सदेश बाहक के रूप में रहता हो ॥
==== ॐ ======
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