गीता की यात्रा

[क] भोग में उठा होश , योग की यात्रा का प्रारभ है ॥

[ख] बिषय , इन्द्रिय और मन की समझ , वैराग्य का द्वार खोलता है ॥

[ग] वैराग्य में -----
तन , मन और बुद्धि में बहनें वाली ऊर्जा निर्विकार हो जाती है ॥

[घ] वैरागी स्थिर प्रज्ञ होता है ॥

[च] स्थिर प्रज्ञ अपनी अलमस्ती में रहता है ॥

[छ ] स्थिर प्रज्ञ - योगी अपनें योगावास्था में गुणातीत हो उठता है

और
तब ......

वह ब्रह्म स्तर का हो कर ब्रह्म में ही डूबा रहता है ॥

==== ॐ =======

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