लोभ क्या है ?



लोभ को कुछ इस प्रकार से समझते हैं :

हम खुली मुट्ठी में जब किसी चीज को बंद करना चाहते हैं
तो उसको कहते हैं - कामना ।

जब हम बंद मुट्ठी को बिना खोले उसमें कुछ और को
कैद करना चाहे हैं तो इस भाव को कहते हैं - लोभ ।

काम , कामना , क्रोध और लोभ - इन सब का एक केंद्र है ,
एक ऊर्जा है , जिसको कहते हैं - राजस गुण
[ Passion mode ]।

राजस गुण की प्रारम्भिक ऊर्जा को आसक्ति कहते हैं ,
आसक्ति जब सघन होती है तब वह कामना बन जाती है ,
कामना के टूटनें का भय , क्रोध उपजाता है ,
और भय के साथ जो कामना होती है अर्थात कमजोर राजस ऊर्जा
की कामना , उसे कहते हैं लोभ ।

जो हमारे पास है पर हम उसकी मात्रा को और बढ़ाना चाहते है
चाहे उसकी जरुरत हो या न हो तो यह भाव
जिस ऊर्जा से उठता है , उसे कहते हैं - लोभ ।

आगे अगले अंक में गीता के कुछ सूत्रों को देखते हैं
जिनका सम्बन्ध लोभ से है ॥

===== ॐ ======

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