क्रोध और गीता
क्रोध के सम्बन्ध में यहाँ हम गीता के कुछ सूत्रों को ले रहे हैं --------
गीता सूत्र - 2.62 - 2.63
इन्द्रिय - बिषय का मेल आसक्ति पैदा करता है , आसक्ति कामना का बीज है और .....
कामना टूटनें का भय , क्रोध का कारण बनता है ।
क्रोध पाप कर्मों का माध्यम है ॥
गीता सूत्र - 3.37
राजस गुण का मुख्य तत्त्व काम है और क्रोध काम ऊर्जा का रूपांतरण है ॥
गीता सूत्र - 4.10
राग , भय और क्रोध रहित , ज्ञानी होता है ॥
गीता सूत्र - 2.56
राग , भय , क्रोध रहित समभाव - योगी , स्थिर प्रज्ञ होता है ॥
गीता सूत्र - 5.19
समभाव वाला ब्रह्म में होता है ॥
गीता के इन सूत्रों को अपना कर क्रोध अग्नि को समझा जा सकता है और ....
यह समझ धीरे - धीरे जैसे - जैसे सघन होगी , आप धीरे - धीरे ब्रह्म मय होते जायेंगे ॥
ब्रह्म मय योगी के लिए यह प्रकृति और इसकी सभी सूचनाएं ब्रह्म के फैलाव के कारण हैं ॥
ब्रह्म मय योगी के लिए प्रकृति के कण - कण मरण ब्रह्म ही ब्रह्म दिखता है ॥
ब्रह्म परमानंद का स्थाई श्रोत है ॥
ब्रह्म के ऊपर प्रभु जो ब्रह्म का भी आश्रय है ,
उसे ब्यक्त करनें का कोई रास्ता नहीं है ॥
===== ॐ =======
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