गीता सागर में डूबो


प्रभु के मार्ग

** गीता श्लोक - 2.39 में साँख्य-योग एवं कर्म योग की बात परम श्री कृष्ण करते हैं ।
** गीता श्लोक - 3.3 में कहते हैं -- ज्ञान - योग एवं कर्म - योग , दो मार्ग हैं ।
** गीता श्लोक - 13.25 में प्रभु कहते हैं --- ध्यान , ज्ञान एवं कर्म - योग से मेरी अनुभूति मिल सकती है ।
** गीता श्लोक - 18.54 - 18.55 में प्रभु कहते हैं -- समभाव वाला परा भक्ति में मुझमें प्रवेश करता है ।
और गीता श्लोक - 4.38 कहता है ---- योग सिद्धि पर ज्ञान मिलता है ।
एवं गीता श्लोक - 13.3 कहता है ---- देह एवं जीवात्मा का बोध ही ज्ञान है ।

गीता के श्लोकों के ऊपर जो लोग किताबें बनाते हैं गीता को पौराणिक कहानियों में ढालते हैं , उनका गीता जैसे परम पवित्र के साथ सही बर्ताव नहीं है । गीता मात्र एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें प्रयोग किये गए शब्दों की परिभाषा कही न कही जरुर दी गयी है , ऎसी स्थिति में गीता - शब्दों का अपना अर्थ लगाना उचित नहीं दिखता ।

भक्ति को लोग सहज माध्यम समझ कर चल पड़ते हैं मंदिर , मंदिर जानें का अभ्यास उत्तम है लेकीन यह मार्ग बहुत लंबा है । अपरा भक्ति से परा में कोई - कोई लोग मीरा जैसे पहुँच
पाते हैं । बुद्धि - योग [ साँख्य - योग ] के माध्यम से सत की अनुभूति पानें वाले अनेक हैं
लेकीन भक्ति मार्ग से प्रभुमय होनें वालो की संख्या बहुत कम है ।

मार्ग चाहे कोई हो जैसे बुद्धि- योग , ज्ञान योग , कर्म योग या भक्ति , सब में कर्म - योग सहज - योग है ।
कर्म योगी कर्म करते हुए , चलते हुए , सोते हुए , नाचते हुए , गाते हुए , खाते हुए , दफ्तर में बैठे हुए - हर समय बिषय एवं इन्द्रियों को समझ कर कर्म - योग में प्रवेश पा सकता है और प्रवेश मिलनें पर कर्म - योग जब फलित होता है तब ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
ज्ञान बैराग्य का द्वार खोल कर परम में पहुंचाता है ।

====== ॐ ======

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