गीता अमृत - 97

मनुष्य क्या चाहता है ?

मनुष्य को छोड़ कर अन्य जीवों की चाह सिमित है - भोजन और काम तक लेकीन मनुष्य इनके अलावा भी
कुछ और चाहता है , वह और क्या है ?
अन्य जीव भोजन में जोर - जबरदस्ती तो करते हैं लेकीन काम में ऐसा नहीं करते । कोई भी जीव मनुष्य को छोड़कर
अपनें बिरोधी लिंग वाले जीव के साथ काम के लिए बल का प्रयोग नहीं करता लेकीन मनुष्य कुछ भी कर सकता है ।
कहते हैं - मनुष्य जीवों में सर्वोत्तम जीव है , उसके पास असीमित बुद्धि है और वह काम - राम दोनों में रूचि
रखता है । मनुष्य अपनें लिए महल बनाता है और उस महल में प्रभु के लिए एक छोटा सा मंदिर भी बनाता है ।
प्रकृति में मनुष्य के अलावा और अन्य कोई ऐसा जीव खोजना संभव नहीं जो प्रभु के लिए भी बसेरा बनाता हो ।
मनुष्य एक मात्र ऐसा प्राणी ऐसा है जिसके जीवन पथ में दो केंद्र हैं - एक केंद्र है भोग और दूसरा केंद्र है , राम ।
वह जिसके दो केंद्र है उसे इलिप्स कहते हैं और मनुष्य का जीवन - पथ एक इलिप्स जैसा ही है ।
मनुष्य को छोड़ कर अन्य जीवों का जीवन - पथ एक केन्द्रवाला है और एक केंद्र वाला बृत कह लाता है ।
मनुष्य जब एक केंद्र की ओर चलता है तब उसे दूसरा केद्र अपनी ओर खीचता है और जब दूसरी ओर मुख करता है
तब पहले वाला अपनी ओर खीचनें लगता है । मनुष्य जब तक दो केन्द्रों के सरारे चलता रहता है तबतक वह
प्रभु मय हो नहीं सकता और अतृप्त ही रहेगा ।
योग मनुष्य के दो केन्द्रों वाले जीवन को एक केंद्र वाला बनाता है और वह केंद्र भोग का नही , भगवान् का
होता है । प्रभु केन्द्रित ब्यक्ति धीरे - धीरे शांत होता जाता है और सम भाव में पहुँच कर परमं आनंद में
पहुँच जाता है ।

===== ॐ =====

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