बुद्धि योग गीता - भाग - 03
गीता की ओर या गीता से दूर
भारत में गीता और सांख्य - योग अति प्राचीन हैं लेकीन क्या कारण है की इनका लोगों पर प्रभाव न के बराबर है ?
भारत परम श्री कृष्ण की ओर जाता तो दिखता नही न्यू यार्क की ओर जाता जरुर दिखता है । भारतीयों को अपनी चीजे कम और पराई चीजे अधिक प्रभावित करती हैं ।
भारत में हिन्दू परिवार का गीता एक सदस्य है लेकीन उसे वह प्यार न मिल
सका जो मिलना था । लोग इसे कपडे में लपेट कर रखते हैं और खोलते तब हैं
जब परिवार में कोई आखिरी श्वास भर रहा होता है । क्या कारण है की लोग इसको कपडे में लपेट कर रखते हैं ? और क्यों उसे सुनाते हैं जो जाने ही वाला है ?
गीता से प्यार करनें वालों की संख्या न के बराबर है क्यों की गीता बैरागी बनाता है । गीता आखिरी श्वास भरते को इसलिए सुनाते हैं की शायद उसे स्वर्ग में जगह मिल जाए ।
ऐसा ब्यक्ति जो जीवन भर भोग को गले में लटकाए घूमता रहा उसे अंत समय में गीता सूना कर स्वर्ग का टिकट देनें की बात लोगों के अन्दर कैसे आई होगी ? इस पर सोचना चाहिए ।
गीता में प्रभु अर्जुन को युद्ध पूर्व बैरागी बना कर युद्ध कराना चाहते हैं या ऐसा चाहते हैं की
अर्जुन इस युद्ध में बैरागी बन जाए और लोग गीता से भी भोग की कामना करते हैं ,
भोग प्राप्ति की । गीता से भोग - प्राप्ति हो सकती है की सोच एक भ्रम है ,
गीता भोग नहीं देता भोग से धीरे - धीरे दूर करता है ।
गीता भोग में राग- रस को नहीं दीखता , यह भोग तत्वों के प्रति होश उठा कर योगी बनाता है ।
गीता भोग में द्रष्टा भाव पैदा करता है और कहता है - अब तूं देख की भोग संसार क्या है और भोग से परे का आयाम कैसा है ?
जब अपनें मुह घुमानें लगें .......
जब अपनें मिलनें से बचनें लगें .....
जब अपनें पराये से दिखनें लगें .....
जब अपना आँगन पराया लगनें लगे .....
तब गीता की किरण अन्दर फूटती है जो उसे पकड़ लिया , वह तो गया उस पार और जो चुक गया वह चुक गया ।
गीता तब बुलाता है जब ----
कामना माथे से टपकती हो ....
क्रोध में देह जलता हो .....
मैं का अहंकार हिला रहा हो ...
मोह में आँखे सदा नम रहती हों .....
गीता की आवाज वे सुनते हैं जो अपनी आवाज सुनते हैं ।
गीता उनके संग है जो अपनें संग हैं ।
गीता से वे सभी बंधन टूट जायेंगे जो भोग से बाँध कर
आप को गुलाम बना रखे हैं ।
यदि योगी बनना हो तो गीता को आप अपना सकते हैं ।
===== ओम ======
Comments