गीता अमृत - 84


सत्य की किरण -----

[क] भ्रम - संदेह में सत्य की खोज , स्वयं में एक भ्रम है और विज्ञान संदेह के आधार पर सत खोज रहा है ।
[ख] सत को खोज का बिषय बनाना , अहंकार की छाया है ।
[ग] असत्य का आत्मा , सत्य है ।
[घ] कोई सत्य ऐसा नहीं जिस पर असत्य की चादर न पड़ी हो ।
[च] भोगी के लिए सत में कोई रस नहीं और योगी सत के रस को अमृत कहता है ।
[छ] भाव असत हैं और सत भावातीत है ।
[ज] भाव सत में पहुँचानें का काम कर सकते हैं यदि भावों में होश पैदा हो सके ।
[झ] सत की किरण भ्रम के अँधेरे को दूर करती है ।

===== ॐ ======

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

मन मित्र एवं शत्रु दोनों है