नाच्यो बहुत गोपाल
पकड़ जब छूटती है -----
तब ये शब्द निकलते हैं ......
[क] मीरा कहती हैं ----अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल
[ख] जेसस कहते हैं ---एली एली लामा सुवत्तनी
[ग] नानक कहते हैं ---नानक दुखिया सब संसार
[घ] परमहंस राम कृष्ण भी कभी- अभी माँ से नाराजगी जताते थे
जेसस जब क्रास पर लटक रहे थे तब हेब्रू भाषा में बोला --हे प्रभु ! आप मुझे क्यों भूल गए ?मीरा नाच - नाच कर जब थक गयी और वह जो चाहती थी वह नहीं मिला तब उनको भी बोलना पड़ा ---अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल ।
नानक संसार भ्रमण में संसार को कमल के फूल की तरह मुस्कुराता देखना चाहते होंगे और जब ऐसा नहीं देख पाए तो बोल पड़े ---नानक दुखिया सब संसार । परम हंस जी मा से वार्तालाप करते थे और जब माँ चुप रहती थी
तब मंदिर को बंद करके गायब हो जाते थे ---कई - कई दिन मंदिर बंद रहता था । परमहंस जी माँ से कुछ चाहते रहे होंगे और जब उनको वह नहीं मिलता था तब वे ऐसा करते थे ।
रस्सी के सहारे कुएं से बाल्टी के माध्यम से पानी निकालते हैं और जब पानी की झलक मिल जाती है तब रस्सी को छोड़ दिया जाता है और अंततः बाल्टी को भी त्यागना पड़ता है । गुण-तत्त्व रस्सी की तरह हैं और बाल्टी है यह हमारा देह और पानी है --आत्मा -परमात्मा । काम , कामना , क्रोह , लोभ , मोह , भय एवं अहंकार तो रस्सी हैं उनको क्या पकड़ कर बैठना जब पानीकी झलक मिल गयी हो ।
अपरा से जब परा में कदम उठता है तब उस काल में भक्त वही बोलता है जो मीरा , नानक , जेसस और परमहंस जी
बोलते थे या करते थे ।
गीता - 7.20 कहता है ---कामना अज्ञान का फल है , गीता आगे कहता है --------
कामना कामना है चाहे राम की हो या काम की
=====ॐ=======
तब ये शब्द निकलते हैं ......
[क] मीरा कहती हैं ----अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल
[ख] जेसस कहते हैं ---एली एली लामा सुवत्तनी
[ग] नानक कहते हैं ---नानक दुखिया सब संसार
[घ] परमहंस राम कृष्ण भी कभी- अभी माँ से नाराजगी जताते थे
जेसस जब क्रास पर लटक रहे थे तब हेब्रू भाषा में बोला --हे प्रभु ! आप मुझे क्यों भूल गए ?मीरा नाच - नाच कर जब थक गयी और वह जो चाहती थी वह नहीं मिला तब उनको भी बोलना पड़ा ---अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल ।
नानक संसार भ्रमण में संसार को कमल के फूल की तरह मुस्कुराता देखना चाहते होंगे और जब ऐसा नहीं देख पाए तो बोल पड़े ---नानक दुखिया सब संसार । परम हंस जी मा से वार्तालाप करते थे और जब माँ चुप रहती थी
तब मंदिर को बंद करके गायब हो जाते थे ---कई - कई दिन मंदिर बंद रहता था । परमहंस जी माँ से कुछ चाहते रहे होंगे और जब उनको वह नहीं मिलता था तब वे ऐसा करते थे ।
रस्सी के सहारे कुएं से बाल्टी के माध्यम से पानी निकालते हैं और जब पानी की झलक मिल जाती है तब रस्सी को छोड़ दिया जाता है और अंततः बाल्टी को भी त्यागना पड़ता है । गुण-तत्त्व रस्सी की तरह हैं और बाल्टी है यह हमारा देह और पानी है --आत्मा -परमात्मा । काम , कामना , क्रोह , लोभ , मोह , भय एवं अहंकार तो रस्सी हैं उनको क्या पकड़ कर बैठना जब पानीकी झलक मिल गयी हो ।
अपरा से जब परा में कदम उठता है तब उस काल में भक्त वही बोलता है जो मीरा , नानक , जेसस और परमहंस जी
बोलते थे या करते थे ।
गीता - 7.20 कहता है ---कामना अज्ञान का फल है , गीता आगे कहता है --------
कामना कामना है चाहे राम की हो या काम की
=====ॐ=======
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