गीता अमृत - 8

साँख्य- योगी एवं अन्य योगी ....गीता श्लोक - 3.3

श्लोक कहता है -----
साँख्य - योगी ज्ञान के माध्यम से जो पाता है अन्य योगी कर्म - योग से वही पाते हैं ।
गरुड़ पुराण कहता है ....
शात्रों से मिलनें वाला ज्ञान परमात्मा से जोड़ता है लेकीन विवेक से अर्जित ज्ञान स्वयं परम ब्रह्म है । बीश्वी शताब्दी के महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टाइन कहते हैं ......
किताबों से मिलनें वाला ज्ञान मुर्दा ज्ञान है और मनुष्य की चेतना से जो ज्ञान उपजता है वह जीवित ज्ञान है ।
गीता कहता है [गीता सूत्र - 13.2 ] ------
क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध ही परम ज्ञान है ।
गरुड़ पुराण कहता है ------
कोई द्वैत्य बादी है तो कोई अद्वैत्य में आस्था रखता है , इस से क्या होगा , वह - परम तो समभाव में दीखता है ।
मार्ग कोई भी हो जबतक वह बंद नहीं होता , माध्यम होता है लेकीन रुका मार्ग बंधन होता है, साधना के मार्ग अनेक हो सकते हैं लेकीन सब से जो मिलता है वह है - सम भाव और सम भाव से निराकार की यात्रा प्रारम्भ होती है जो अंत हींन यात्रा है ।
साधना का आखिरी पड़ाव है बैराग्य जहां साँख्य योगी , ज्ञान के माध्यम से बुद्धि के सहारे पहुँचते हैं और अन्य
योगी भोग तत्वों के प्रति होश बना कर कर्म - योग के माध्यम से पहुँचते हैं ।
बिषय से बुद्धि तक ...
बुद्धि से ज्ञान तक ...
ज्ञान से बैराग्य तक ....
और बैराग्य में ....
आत्मा - परमात्मा मय होनें तक का मार्ग का नाम -----
गीता है

====ॐ======

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