तंत्र और योग --12
अनहद चक्र [Heart Centre ]
प्रभु की पहचान ह्रदय के माध्यम से होती है ---गीता श्लोक ...13.24
यहाँ आप गीता के निम्न श्लोकों को भी देखें ---------
10.20 , 13.17 , 13.22 , 15.7 , 15.11 , 15.15 , 18.61 , 7.12 - 7.13 , 10.4 - 10.5
दो बातें हैं -----
[क] सभी भाव भावातीत प्रभु से हैं ।
[ख] आत्मा-परमात्मा का स्थान देह में , ह्रदय है ।
अनहद चक्र को मथुरा तीर्थ के रूप में भी माना जाता है । मूलाधार - अनहद के मध्य काम-नाभि चक्रों की उपस्थिति साधना की दिशा को रहस्यात्मक बना देती है और ये चक्र मनुष्य के स्वभाव को अध्यात्म से भोग आधारित बना देते हैं ।
जब काम चक्र एवं नाभि चक्रों की पकड़ ढीली पड़ती है तब ----
राग रहित प्यार ह्रदय में धडकता है ...
ह्रदय में आत्मा- परमात्मा बसते हैं ...
जो भावों के बीज हैं , लेकीन स्वयं .....
भावातीत हैं ।
भाव दो प्रकार के होते हैं ; गुण आधारित और निर्गुण । बाहर से देखनें पर दोनों एक से दीखते हैं लेकीन एक होते नहीं । सकारण भाव , भोग- भाव हैं और कारण रहित भाव प्रभु से भरा होता है । एक बात आप को समझनी चाहिए ------
ह्रदय में धड़कता निर्विकार प्यार की लहरें जब गुण प्रभावित मन- बुद्धि में पहुंचती हैं तब ये बासना की लहरों में बदल जाती हैं ।
योगी बासना में प्यार देखता है और भोगी प्यार में भी बासना खोजता रहता है ।
दो भक्त हैं - मीरा और परमहंस रामकृष्ण । मीरा जब कहती हैं ---अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल ....तब मीरा परा भक्ति में नहीं होती , परा भक्त कभी थकता नहीं है । परमहंस जी जब माँ काली के मंदिर को बंद करके चले जाते थे , उस समय वे परा भक्ति में नहीं होते थे ।
कोई भी भक्त हर पल प्रभु मय नहीं रह सकता और जब उस पर गुणों का असर पड़ता है तब वह इस प्रकार का काम करता है । ह्रदय का द्वार जब खुलता है तब वह भक्त कटी पतंग जैसा हो जाता है , वह कस्तूरी मृग की तरह हो जाता है , उसके लिए न दिन है न रात , न सुख है न दुःख , न कोई पराया है - सब अपनें होते हैं ।
मीरा- परमहंस रामकृष्ण जहां होते हैं वह स्थान एक चुम्बकीय क्ष्रेत्र जैसा हो जाता है जिसमें यदि कोई साधक पहुंचता है तो वह बच नहीं सकता ।
====ॐ=====
प्रभु की पहचान ह्रदय के माध्यम से होती है ---गीता श्लोक ...13.24
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10.20 , 13.17 , 13.22 , 15.7 , 15.11 , 15.15 , 18.61 , 7.12 - 7.13 , 10.4 - 10.5
दो बातें हैं -----
[क] सभी भाव भावातीत प्रभु से हैं ।
[ख] आत्मा-परमात्मा का स्थान देह में , ह्रदय है ।
अनहद चक्र को मथुरा तीर्थ के रूप में भी माना जाता है । मूलाधार - अनहद के मध्य काम-नाभि चक्रों की उपस्थिति साधना की दिशा को रहस्यात्मक बना देती है और ये चक्र मनुष्य के स्वभाव को अध्यात्म से भोग आधारित बना देते हैं ।
जब काम चक्र एवं नाभि चक्रों की पकड़ ढीली पड़ती है तब ----
राग रहित प्यार ह्रदय में धडकता है ...
ह्रदय में आत्मा- परमात्मा बसते हैं ...
जो भावों के बीज हैं , लेकीन स्वयं .....
भावातीत हैं ।
भाव दो प्रकार के होते हैं ; गुण आधारित और निर्गुण । बाहर से देखनें पर दोनों एक से दीखते हैं लेकीन एक होते नहीं । सकारण भाव , भोग- भाव हैं और कारण रहित भाव प्रभु से भरा होता है । एक बात आप को समझनी चाहिए ------
ह्रदय में धड़कता निर्विकार प्यार की लहरें जब गुण प्रभावित मन- बुद्धि में पहुंचती हैं तब ये बासना की लहरों में बदल जाती हैं ।
योगी बासना में प्यार देखता है और भोगी प्यार में भी बासना खोजता रहता है ।
दो भक्त हैं - मीरा और परमहंस रामकृष्ण । मीरा जब कहती हैं ---अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल ....तब मीरा परा भक्ति में नहीं होती , परा भक्त कभी थकता नहीं है । परमहंस जी जब माँ काली के मंदिर को बंद करके चले जाते थे , उस समय वे परा भक्ति में नहीं होते थे ।
कोई भी भक्त हर पल प्रभु मय नहीं रह सकता और जब उस पर गुणों का असर पड़ता है तब वह इस प्रकार का काम करता है । ह्रदय का द्वार जब खुलता है तब वह भक्त कटी पतंग जैसा हो जाता है , वह कस्तूरी मृग की तरह हो जाता है , उसके लिए न दिन है न रात , न सुख है न दुःख , न कोई पराया है - सब अपनें होते हैं ।
मीरा- परमहंस रामकृष्ण जहां होते हैं वह स्थान एक चुम्बकीय क्ष्रेत्र जैसा हो जाता है जिसमें यदि कोई साधक पहुंचता है तो वह बच नहीं सकता ।
====ॐ=====
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