अर्जुन का प्रश्न - 3
अर्जुन [ गीता श्लोक 3.36 ] पूछते हैं--मनुष्य न चाहते हुए भी पाप क्यों करता है ?
प्रश्न का यथा उचित उत्तर तो श्लोक 3.37 से मिल जाता है लेकिन यहाँ हम देखनें जा रहे हैं श्लोक 3.37- 3.43 तथा
श्लोक 4.1-4.3 तक को । प्रश्न के उत्तर में पहुंचनें से पूर्व हम इसे देखते हैं ------
प्यार की तरंगे ह्रदय में उठती हैं...
आत्मा- परमात्मा भी ह्रदय में रहते हैं....
प्यार की तरंगे जब मन को छूती हैं .......
तब निर्विकार प्यार वासना बन जाता है ।
अर्जुन अपनें पहले प्रश्न में स्थिर -प्रज्ञ को जानना चाहते थे , प्रश्न दो में कर्म -ज्ञान को समझना चाहते थे और अब
पाप होनें के कारण को जानना चाहते हैं । गीता जैसे - जैसे आगे बढ़ रहा है अर्जुन की बुद्धि और भ्रमित होती
जा रही है । परम श्री कृष्ण कहते हैं --मनुष्य काम के सम्मोहन में आकर पाप करता है [गीता - 3.37 ] लेकिन
यहाँ हम कुछ और सूत्रों को भी देखेंगे जिस से काम-रहस्य को भी समझा जा सके । गीता में काम को समझनें
के लिए हमें श्लोक --3.37 , 5.23 , 5.26 , 16.21 ,तथा श्लोक 3.38 से 3.43 तक को भी देखना चाहिए जिनमें
काम नियंत्रण की ध्यान बिधि बताई गई है .गीता में श्री कृष्ण कहते हैं---काम- क्रोध राजस गुन के तत्व हैं
[ गीता 3.37 ], काम का रूपांतरण क्रोध है [ गीता 2.62 ] और इसका सम्मोहन बुद्धि तक होता है पर जो
आत्मा केंद्रित है वह इस सम्मोहन से बचा रह जाता है । काम,क्रोध एवं लोभ जो राजस गुन के तत्व हैं , नरक
के द्वार हैं। राजस गुन धारी कभी प्रभु से नही जुड़ सकता [ गीता-6।27 ]। राजस एवं तामस गुणों से अप्रभावित
ब्यक्ति योगी ,सन्यासी तथा बैरागी होता है । निर्विकार काम परमात्मा है [ गीता-7।11 ]।
=====ॐ========
प्रश्न का यथा उचित उत्तर तो श्लोक 3.37 से मिल जाता है लेकिन यहाँ हम देखनें जा रहे हैं श्लोक 3.37- 3.43 तथा
श्लोक 4.1-4.3 तक को । प्रश्न के उत्तर में पहुंचनें से पूर्व हम इसे देखते हैं ------
प्यार की तरंगे ह्रदय में उठती हैं...
आत्मा- परमात्मा भी ह्रदय में रहते हैं....
प्यार की तरंगे जब मन को छूती हैं .......
तब निर्विकार प्यार वासना बन जाता है ।
अर्जुन अपनें पहले प्रश्न में स्थिर -प्रज्ञ को जानना चाहते थे , प्रश्न दो में कर्म -ज्ञान को समझना चाहते थे और अब
पाप होनें के कारण को जानना चाहते हैं । गीता जैसे - जैसे आगे बढ़ रहा है अर्जुन की बुद्धि और भ्रमित होती
जा रही है । परम श्री कृष्ण कहते हैं --मनुष्य काम के सम्मोहन में आकर पाप करता है [गीता - 3.37 ] लेकिन
यहाँ हम कुछ और सूत्रों को भी देखेंगे जिस से काम-रहस्य को भी समझा जा सके । गीता में काम को समझनें
के लिए हमें श्लोक --3.37 , 5.23 , 5.26 , 16.21 ,तथा श्लोक 3.38 से 3.43 तक को भी देखना चाहिए जिनमें
काम नियंत्रण की ध्यान बिधि बताई गई है .गीता में श्री कृष्ण कहते हैं---काम- क्रोध राजस गुन के तत्व हैं
[ गीता 3.37 ], काम का रूपांतरण क्रोध है [ गीता 2.62 ] और इसका सम्मोहन बुद्धि तक होता है पर जो
आत्मा केंद्रित है वह इस सम्मोहन से बचा रह जाता है । काम,क्रोध एवं लोभ जो राजस गुन के तत्व हैं , नरक
के द्वार हैं। राजस गुन धारी कभी प्रभु से नही जुड़ सकता [ गीता-6।27 ]। राजस एवं तामस गुणों से अप्रभावित
ब्यक्ति योगी ,सन्यासी तथा बैरागी होता है । निर्विकार काम परमात्मा है [ गीता-7।11 ]।
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