भोग से आगे

गीता सूत्र –2.71

विहाय कामान् य : सर्वान् पुमान् चरति नि : स्पृह :

निः ममः निः अहंकार : : शांतिम् अधिगच्छति //

काम , स्पृहा , ममता एवं अहंकार अप्रभावित , परम शान्ति में रहता है //

One who is free from sex , attachement , mineness and ego , remains in complete peace .

गीता सूत्र –2.72

एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ न एनाम् प्राप्य विमुह्यति

स्थित्वा अस्याम् अंत : काले अपि ब्रह्म – निर्वाणम् ऋच्छति //

ऊपर सूत्र – 2.71 की स्थिति जब मिलती है तब वह योगी गुण – तत्त्वों से अप्रभावित रहता हुआ बरम मय स्थिति में अंत काल में ब्रह्म – निर्वाण को प्राप्त करता है //

The state as explained in Gita – 2.71 is a divine frame of mind and intelligence and through this frame one gets Brahm – Nirvana .


गीता के दो सूत्र हमें क्या बताना चाह रहे हैं?

हम इस समय जिस आयाम में हैं [ भोग – आयाम ] , गीता अपने दो सूत्रों से हमें वहाँ से उस आयाम को दिखाना चाह रहा है जो परम – आयाम है

अर्थत … ...

भोग से सीधे ब्रह्म के आयाम में पहुंचानें का काम गीता के ये दो सूत्र करना चाह रहे हैं//

गीता भोग से भगाना नहीं चाहता,गीता भोग में होश उठाना चाहता है

और भोग में उठा होश ही वह आइना है जिस पर ब्रह्म प्रतिविम्बित होता है//


===========ओम्=========



Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

मन मित्र एवं शत्रु दोनों है