क्या है ज्ञान - विज्ञान
गीता अध्याय –06
गीता सूत्र –6.7
ज्ञान – विज्ञान तृप्तम् आत्मा
कूटस्थ : विजीत – इन्द्रिय : /
युक्त : इति उच्यते योगी
सम्लोष्ट्र अश्म कांचन : //
वह जिसकी इन्द्रियाँ नियोजित हैं ,
वह सम भाव योगी ----
ज्ञान विज्ञान से परिपूर्ण होता है //
Whose senses are controlled -----
he is said to be in Evenness – Yoga and -----
he is filled with wisdom and knowledge
[ Gyan – Vigyan ] .
क्या है ज्ञान – विज्ञान?
गीता में यदि आप ज्ञान का अर्थ खोजते हैं तो आप को यह मिलता है ------
क्षेत्र – क्षेत्र - ज्ञयो : ज्ञानं एत् तत् ज्ञानं मतं मम --- गीता - 13.3
अर्थात
क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है/
क्षेत्र है पञ्च महाभूत + [ मन , बुद्धि एवं अहंकार + चेतना + आत्मा + सभीं प्रकार के विकार + सभी प्रकार के द्वैत्य + धृतिका ] / क्ष ेत्रज्ञ के सम्बन्ध में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं , यह मैं हूँ जो क्षेत्र को समझता है / ज्ञान – विज्ञान उसे कहते हैंजिससेसाकार – निराकार का संदेह रहित बोध होता है /
ज्ञान – विज्ञान दोनों एक साथ एक बुद्धि में तब आते हैं जब बुद्धि में निर्विकार ऊर्जा बह रही होती है/
परम सत्य का बोध ज्ञान है और संसारी बस्तुओं के प्रति होश का बनाना विज्ञान कहलाता है//
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