गीता के एक सौ सोलह सूत्र एक कदम और
गीता सूत्र – 18.55 प्रभु का परा भक्त प्रभु का द्वार होता है // गीता सूत्र – 18.50 कर्म – योग में नैष्कर्म्य – सिद्धि ज्ञान योग की परानिष्ठा होती है // गीता सूत्र – 18.49 जब कर्म में आसक्ति की छाया न पड़े तब नैष ्कर्म्य – सिद्धि मिलती है // गीता सूत्र – 4.18 कर्म – योग की सिद्धि पर कर्म में अकर्म अकर्म में कर्म दिखनें लगता है // गीता सूत्र – 4.38 योग सिद्धि से ज्ञान मिलता है // गीता सूत्र – 13.3 क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है // देह क्षेत्र है और देह में जीवात्मा रूप में परमात्मा क्षेत्रज्ञ है // गीता - प्रसाद रूप में गीत के कुछ मोतियों को आप स्वीकार करें ----- प्रभु श्री कृष्ण तो आप के संग – संग हैं लेकिन ----- आप को यह देखना है कि क्या ---- आप भी अपनें दिल में प्रभु को रखते हैं // ==== ओम ======