गीता के एक सौ सोलह सूत्र एक और अंश
गीता के एक सौ सोलह सूत्रों का जो उपहार यहाँ दिया जा रहा है उसका अगला भाग
गीता सूत्र –7.14
तीन गुणों की माया को वह समझता है जो प्रभु मय होता है //
गीता सूत्र –7.13
गुणों से मोहित गुणातीत को नहीं समझता //
गीता सूत्र –7.12
प्रकृति के तीन गुण प्रभु से हैं , उनके भाव भी प्रभु से हैं लेकिन इन दोनों से परे प्रभु हैं //
गीता सूत्र –15.16
संसार में दो पुरुष हैं ; एक क्षर एवं दूसरा अक्षर //
गीता सूत्र –15.17
दोनों पुरुषों से परे परम पुरुष है जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का नाभि केंद्र है //
गीता सूत्र –13.2
भौतिक देह क्षेत्र कहलाता है और इसका ज्ञाता [ देही - जीवात्मा ] क्षेत्रज्ञ है //
ब्रह्म टाइम – स्पेस का मूल है पर इस से प्रभावित नहीं//
ब्रह्म वह माध्यम है जिसको प्रभु से अलग करके समझना कठिन है//
ब्रह्म एक अनुभूति है जो शांत मन – बुद्धि में उपजती है//
प्रकृति में चल रहे बदलाव से माया को समझा जा सकता है लेकिन यह समझ पूर्ण नहीं//
स्वयं में झांको और झाकने का अभ्यास करते रहो एक दिन------
वह घडी आ ही जायेगी जब आप को प्रभु झांकता होगा//
====ओम=======
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