गीता के एक सौ सोलह सूत्र भाग दो

गीता के एक सौ सोलह सूत्रों की श्रृंखला में कुछ और ध्यान – सूत्र -------

भाग – दो

गीता सूत्र 14.17

ज्ञान प्राप्ति सत् - गुण से होती है , लोभ उठता है राजस गुण से और अज्ञान – मोह आता है तामस – गुण से /

गीता सूत्र 14.6

ज्ञान सुख का श्रोत है /

गीता सूत्र 14.16

सात्त्विक गुण से परम आनंद मिलता है , राजस गुण के आनंद में दुःख होता है और तामस गुण तो नर्क का मार्ग है /

गीता सूत्र 14.7

आकांक्षा , लोभ राजस गुण के तत्त्व हैं /

गीता सूत्र 14.12

लोभ एवं आसक्ति राजस गुण के प्रमुख तत्त्व हैं /


गीता के कुछ महत्व पूर्ण सूत्रों के भावों को अति सरल भाषा में हम देनें का प्रयाश मात्र इसलिए यहाँ कर रहे हैं कि पांच हजार से गीता अपनें अनमोल रत्नों के साथ आम आदमी से दूर रहा है,लोग यह समझते हैं कि कहीं हमारी कमियाँ प्रभु को न दिख जाएँ अतः लोग दूर – दूर भागते हैं,गीता को समझनें के स्थान पर गीता को भय के साथ पूजते हैं और परिणाम शून्य होता है//

गीता से आप को भयभीत होनें की जरूरत नहीं,गीता आप से कुछ नहीं चाहता मात्र इतन कहता है,आप जो भी कर रहे हैं उसमें होश बनाइये,आंखे खोल कर जो कर रहे हैं करिये क्योंकि …..

जो कुछ भी आप कर रहे हैं उसका परिणाम आप को ही भोगना है//

गीता भोग से दूर नहीं करता …...

गीता भोग को समझाता है और कहता है …..

भोग एक सुगम मार्ग है इसे हाँथ से न जानें देना,भोग को योग में बदल कर भोग के रहस्य को समझो जो माया से परे के मार्ग में पहुंचाता है और माया परे मायापति रहते हैं//

गुणोंके प्रति उपजा होश ही गुणातीत बनाता है//


=====ओम=====


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