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Showing posts from July, 2011

गीता के एक सौ सोलह सूत्र अगला अंश

गीता के एक सौ सोलह सूत्रों का अगला अंश यहाँ आप देख सकते हैं ------- गीता सूत्र – 14.19 तीन गुणों को करता देखनें वाला धृष्ट रूप में प्रभु में बसता है // गीता सूत्र – 14.22 तत्त्व वित्तु तीन गुणों की छाया से परे बसता है // गीता सूत्र – 14.25 कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म देखनें वाला संभव योगी गुणातीत होता है // गीता सूत्र – 5.24 वह जो अपनें अंदर परम आनंद एवं परम प्रकाश देखता है वह ब्रह्म निर्वाण में होता है // गीता सूत्र – 6.15 मन को ऐसा बना देना की उस पर प्रभु दिखानें लगे , उस मार ्ग का नाम है , ध्यान // गीता सूत्र – 3.27 करता भाव अहंकार की छाया है , गुण कर्म – करता हैं // गीता एक ऐसा बिषय है जिसको सबनें अपनाया है चाहे वे भक्ति मार्गी हों या अद्वैत्य मार्गी . चाहे वे आदि शंकराचार्य हों या दर्शन शास्त्र के चिन्तक सर्वपल्ली राधाकृषनन , आखिर क्या है गीता में जो सब को अपनी ओर खीचता है ? आप इस प्रश्न के सम्बन्ध में सोचें // ===== ओम ======

गीता के एक सौ सोलह सूत्र एक और अंश

गीता के एक सौ सोलह सूत्रों का जो उपहार यहाँ दिया जा रहा है उसका अगला भाग गीता सूत्र – 7.14 तीन गुणों की माया को वह समझता है जो प्रभु मय होता है // गीता सूत्र – 7.13 गुणों से मोहित गुणातीत को नहीं समझता // गीता सूत्र – 7.12 प्रकृति के तीन गुण प्रभु से हैं , उनके भाव भी प्रभु से हैं लेकिन इन दोनों से परे प्रभु हैं // गीता सूत्र – 15.16 संसार में दो पुरुष हैं ; एक क्षर एवं दूसरा अक्षर // गीता सूत्र – 15.17 दोनों पुरुषों से परे परम पुरुष है जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का नाभि केंद्र है // गीता सूत्र – 13.2 भौतिक देह क्षेत्र कहलाता है और इसका ज्ञाता [ देही - जीवात्मा ] क्षेत्रज्ञ है // ब्रह्म टाइम – स्पेस का मूल है पर इस से प्रभावित नहीं // ब्रह्म वह माध्यम है जिसको प्रभु से अलग करके समझना कठिन है // ब्रह्म एक अनुभूति है जो शांत मन – बुद्धि में उपजती है // प्रकृति में चल रहे बदलाव से माया को समझा जा सकता है लेकिन यह समझ पूर्ण नहीं // स्वयं में झांको और झाकने का अभ्यास करते रहो एक दिन ------ वह घडी आ ही जायेगी जब आप को प्रभु झांकता होगा // ==== ओम =======

गीता के एक सौ सोलह सूत्र अगला भाग

गीता के एक सौ सोलह सूत्रों की यह माला अब आप को माया - ब्रह्म रहस्य के कुछ और सूत्रों से परिचय करा रहा है // गीता सूत्र – 13.13 अनादि परं ब्रह्म न सत है न असत अनादि परम ब्रह्म न सत् है न असत् गीता सूत्र – 14.26 गुणातीत ब्रह्म स्तर का होता है // गीता सूत्र – 14.27 ब्रह्म का अस्तित्व मुझ से है और ब्रह्म अब्यय , शाश्वत , परम धर्म एवं परमानंद का श्रोत है // गीता सूत्र – 13.20 गुणातीत योगी जन्म , जीवन , बुढापा एवं मृत्यु की सोच से परे रहता है // गीता के सूत्र जब स्वयं बोल रहे हों तो श्रोता बनना ही उत्तम दिखता है / अब आप इन सूत्रों को मूल गीता में देखें और अपनी बुद्धि को इन पर सोचनें दें , क्या पता किस घडी आप को वे शब्द मिल जाएँ जिनको श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र में बोले थे // ======= ओम =======

जीव रचना भाग दो

गीता के एक सौ सोलह सूत्रों की माला के अंतर्गत जीव रचना के सम्बन्ध मे कुछ गीता के और सूत्रों को हम यहाँ देखनें जा रहे हैं ------ गीता सूत्र – 13.6 – 13.7 पञ्च महाभूत , दस इन्द्रियाँ पांच बिषय , मन , बुद्धि , अहंकार अब्यय , गुण तत्त्व जैसे कामना , द्वेष , सुख – दुःख , धृतिका , चेतना , विकार आदि के साथ देह की रचना है और जब इसमें आत्मा का आना हो जाता है तब यह देह जीव – देह बन जाता है / गीता सूत्र – 13.27 सभीं जड़ एवं चेतन क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ के योग का फल हैं // गीता के कुछ सूत्र जैसे सूत्र 74 , 7.5 , 7,6 , 13.6 , 13.7 , 14.3 , 14.4 को जब एक साथ देखते हैं तब जो बात सामनें आती है वह कुछ इस प्रकार से होती है // दो प्रकृतियाँ ; जड़ एवं चेतन जब आपस में मिलती हैं … .... क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ का जब आपस में मिलन होता है … .. प्रकृति एवं पुरुष जब मिल कर एक होते हैं … ... तब … . अपरा प्रकृति के आठ तत्त्व एवं चेतना के फ्यूजन में ब्रह्म के सहयोग से आत्म का फ्यूजन यदि होता है तब एक नये जीव का निर्माण होता है , यह है गीता का विज्ञान / / आप अब ऊपर दिए गए गीता के सूत्र

जीव रचना भाग एक

देखिये यहाँ गीता का वह विज्ञान जिसे आज के वैज्ञानिक खोज रहे हैं प्रभु श्री कृष्ण गीता श्लोक – 7.2 में कहते हैं ------ अर्जुन अब मैं तेरे को वह सविज्ञान ज्ञान देनें जा रहा हूँ जिसको समझनें वाले को और कुछ समझनें को नहीं बचता // अब देखिये गीता सूत्र – 7.4 , 7.5 , 7.5 को जो कह रहे हैं ------- भूमि , जल , वायु , अग्नि , आकाश , मन , बुद्धि एवं अहंकार [ अपरा प्रकृति के आठ तत्त्व ] और चेतना [ परा प्रकृति ] जो जीव धारण करनें की ऊर्जा है , जब आपस में मिलते हैं तब ऐसा आयाम बनाता है जो प्रभु के अंश जीवात्मा को अपनी ओर आकर्षत करता है और जब अपरा , परा एवं जीवात्मा का मिलन हो जाता है तब एक नया जीव तैयार होता है // नासा के वैज्ञानिक आज खोज रहे हैं नयी पृथ्वी को जहाँ हमारी पृथ्वी जैसा वातावरण हो और शूक्ष्म एक कोशकीय या बहू कोशकीय जीवों के होनें की संभावनाएं हो // आज वैज्ञानिक कह रहे हैं , हमारी मिल्की वे गलेक्सी में 50 billion planets हैं जिनमें से 500 million planets ऐसे हैं जहाँ जीव उत्पन्न होनें की संभावनाएं हैं // पञ्च महाभूतों को खोजना तो आसान है लेकिन मन , बुद्धि , अहंकार , चेत

गीता के एक सौ सोलह सूत्र भाग दो

गीता के एक सौ सोलह सूत्रों की श्रृंखला में कुछ और ध्यान – सूत्र ------- भाग – दो गीता सूत्र 14.17 ज्ञान प्राप्ति सत् - गुण से होती है , लोभ उठता है राजस गुण से और अज्ञान – मोह आता है तामस – गुण से / गीता सूत्र 14.6 ज्ञान सुख का श्रोत है / गीता सूत्र 14.16 सात्त्विक गुण से परम आनंद मिलता है , राजस गुण के आनंद में दुःख होता है और तामस गुण तो नर्क का मार्ग है / गीता सूत्र 14.7 आकांक्षा , लोभ राजस गुण के तत्त्व हैं / गीता सूत्र 14.12 लोभ एवं आसक्ति राजस गुण के प्रमुख तत्त्व हैं / गीता के कुछ महत्व पूर्ण सूत्रों के भावों को अति सरल भाषा में हम देनें का प्रयाश मात्र इसलिए यहाँ कर रहे हैं कि पांच हजार से गीता अपनें अनमोल रत्नों के साथ आम आदमी से दूर रहा है , लोग यह समझते हैं कि कहीं हमारी कमियाँ प्रभु को न दिख जाएँ अतः लोग दूर – दूर भागते हैं , गीता को समझनें के स्थान पर गीता को भय के साथ पूजते हैं और परिणाम शून्य होता है // गीता से आप को भयभीत होनें की जरूरत नहीं , गीता आप से कुछ नहीं चाहता मात्र इतन कहता है , आप जो भी कर रहे हैं उसमें

गीता के एक सौ सोलह ध्यान सूत्र एक

गीता के एक सौ सोलह ध्यान सूत्रों की श्रंखला में अगले कुछ और सित रों को आप देखें … गीता सूत्र 14.5 मनुष्य के देह मे आत्मा को तीन प्राकृति जन्य गुणरोक कर रखते हैं // गीता सूत्र 14.19 गुणों को कर्ता रूप में देखनें वाला द्रष्टा होता है // गीता सूत्र 14.10 गीता यहाँ वह विज्ञान दे रहा है जोआज तो विज्ञान में नहीं है लेकिन आनें वाले दिनों में यह विज्ञान का बिषय जरुर बनेगा … .. गीता यहाँ कह रहा है … .. प्रत्येक मनुष्य में तीन गुण हर पल रहते हैं , उनमें जब एक गुण ऊपर उठाता है तब अन्य दो कमजोर पड़ जाते हैं और ऊपर उठा गुण मनुष्य से वह कर्म करवाता है जो उसके अधीन होता है / गुणों का ऊपर उठान और पुनः नीचे आना ऐसे होता रहता है जैसे थर्मामीटर का पारा ऊपर नीचे उठाता रहता है / मनुष्य का खान , पान और सोच गुणों में परिवर्तन लाते हैं / तीन गुणों का परिणाम मनुष्य का स्वभाव बनाता है , स्वभाव से मनुष्य कर्म करता है // ===== ॐ =====