गीता का सन्देश
यदा संहरते च अयं
कूर्म:अंगानि एव सर्वश:
इन्द्रियाणि इन्द्रिय – अर्थेभ्य:
तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता||
कर्म – योग का एक पूर्ण रूपेण स्पष्ट सूत्र यहाँ गीता तत्त्व – विज्ञान में एक सौ सोलह
सूत्रों की श्रृंखला के अंतर्गत ऊपर दिया गया , आप इस सूत्र को समझें और इसकी गहराई
का मजा लें , सूत्र कह रहा है … ................
प्रज्ञावान वह है-----
जो अपनी इन्द्रियों के ऊपर ऐसा नियंत्रण रखता हो जैसे एक कूर्म[कछुआ]अपनें अंगों पर
रखता है||
यहाँ इस सूत्र में गीता क्या कह रहा है?
एक कछुआ अपनें अंगों को जैसे नियंत्रण में रखता है ठीक उसी तरफ मनुष्य का नियोजन अपनी इन्द्रियों पर होना चाहिए और जिसका नियंत्रण ऐसा है,वह है,स्थिर – प्रज्ञ योगी|
अब आप देखिये क्या इस से भी अधिक स्पष्ट कोई बात और हो सकती है?
=========== ओम ==============
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