गीता के116सूत्रों की माला की अगली मणि …...


गीता सूत्र –5.10

ब्रह्मणि आधाय कर्माणि संग

त्यक्त्वा करोति यः

लिप्यते न स पापेन

पद्म – पत्रं इव अम्भसा//

आसक्ति एवं कर्म – फल चाह रहित ब्यक्ति पाप से अछूता रहता है जैसे

पानी में रहते हुए भी कमल – पत्र पानी से अछूता रहते हैं//


He who does his work without attachment and expectation of its result remains untouched

by sins .


आसक्ति रहित और कर्म – फल की बिना कोई उम्मीद किये कर्म करना

पढनें और सुननें में यः बात बहुत ही आसान दिखती है लेकिन क्या धारण करनें में भी

सरल ही है?

आसक्ति,कामना एवं अहंकार रहित …......

क्रोध,लोभ एवं मोह रहित …....

कर्म करना क्या है?


इस स्थिति में जो कर्म करता है वह कर्म कर्ता नहीं होतावह कर्म एवं स्व का द्रष्टा होता है//

क्या कोई इवरेस्ट छोटी से बोले तो क्या हम जो तराई में बैठे हैं,उसकी आवाज को सुन सकते हैं?

जी नहीं सुन सकते/गीता की बातें इवरेस्ट से आ रही आवाज जैसी हैं और हम ऐसे हैं जैसे तराई

में बैठे हों,फिर गीता की बात हमें कैसे सुनाई देगी?

गीता को पढ़ना,पढाना अति सरल है लेकिन गीता की बातों को जीवन में ढालना अति कठिन//


=======ओम=======



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