सत्य की खोज

सत्य की खोज 

“जिसने मन को जीत लिया है, उसके लिए मन सबसे अच्छा मित्र है ; लेकिन  जो ऐसा करने में विफल रहा है, उसके लिए उसका मन सबसे बड़ा दुश्मन बना रहता है "

निम्न लिखित चार विशेषताओं के कारण अनियंत्रित मन व्यक्ति के जीवन को अस्त-व्यस्त करने की क्षमता रखता है

1. यह पसंद और नापसंद से भरा है

2. इसमें अतीत या भविष्य में फिसलने की प्रवृत्ति है

3. यह अंतहीन इच्छाएं उत्पन्न करता है

4. यह वस्तुओं और प्राणियों के प्रति लगाव विकसित करता है।

ज्यादातर लोग मन के कारण या तो अपने भूत काल से जुड़े रहते हैं या भविष्य की कल्पनाओं में डूबे रहते हैं , फलस्वरूप उनका आज उनके जीवन का अंग नही बन पाता और वर्तमान के आनंद से वंचित रह जाते हैं । 

हमारी पूरी जीवन शैली एक धोखा है, जो हमें किसी चीज के लिए तैयार करने के लिए बनाई गई है लेकिन वह चीज कभी आती नहीं है। हम अपना जीवन किसी चीज़ के पीछे भागते हुए बिताते हैं लेकिन हम नहीं जानते कि वह चीज़ क्या है? 

गोदी के अपनें बच्चे के मनोविज्ञान को ध्यान से समझना ; खिलौने की दुकान पर वह एक के बाद एक सभीं खिलौनों को देखना और छूना चाहता है लेकिन पल भर के लिए फिर उन सबकी आर्ट से मुंह मोड़ लेता है और वापिस लौटने के लिए रोने लगता है , ऐसा क्यों ? क्योंकि वह उसे खोज रहा है जो उसका मूल है , जिससे वह है और जिसके पा लेने के बाद वह पुनः कुछ पाने की सोच से मुक्त हो 

सके । अन्य जीवों का जीवन सुरक्षा , भोजन और प्रजनन आधारित होता है लेकिन मनुष्य इन तीन के आलावा भी कुछ और की तलाश में डूबा रहता है। आखिर वह वस्तु क्या है ? जिसकी तलाश मनुष्य के माथे के पसीने को सूखने नहीं देती ! जीवन भर की भाग दौड़ के बाद जब उसका शरीर कुछ और भागने के लिए सक्षम नहीं रह जाता तब अगर वह चाहे तो उस वस्तु को समझ सकता है जिसको प्राप्त करने में वह सारे जीवन भागता रहा है पर ऐसा बहुत कम लोग कर पाते हैं और जो कर पाते हैं वे आवागमन से मुक्त हो जाते हैं । मन से मोक्ष और मन से आवागमन चक्र में फेस रहना दोनो हैं । मन से भोग और मन से भोग त्याग दोनों हैं । मन से प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों हैं और मन तीन गुणों से नियंत्रित एक यंत्र जैसा है । जबतक गुणों के समीकरण का बोध नहीं होता तबतक मन गुणों की वृत्तियों से मुक्त नहीं हो सकता । गुणों की वृतियों से रिक्त मन उसकी अनुभूति कराता है जिसे हम आप पूरे जीवन खोजते रहे हैं ।

~~ॐ ~~

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