सत् मार्ग
एक भक्त के दिल की धड़कनें कहती हैं ⏬
# एक परा भक्त के कुछ मूल मंत्रों को ऊपर दिया गया है , आप इन 05 मंत्रों पर गंभीरता से मनन करें #
प्रभु से एकत्व स्थापित करने के कुछ सूत्र यहां दिए जा रहे हैं , आप इनमें से किसी एक को पकड़ कर वैराग्य में छलांग लगा सकते हैं । वैराग्य ही भक्ति का फल है।
# जैसे नदी में थोड़ी खुदाई से शीघ्र जल मिल जाता है वैसे तीर्थ में थोड़े प्रयत्न से प्रभु की खुशबू मिलने लगती है ।
# देवदर्शन , तीर्थ भ्रमण , सत्संग आदि से उठ रहे सत भावों में से किसी एक के साथ चित्त को बाध देना , धारणा है । धारणा की सिद्धि पर ध्यान में प्रवेश मिलता है । ध्यान की सिद्धि से संप्रज्ञात समाधि मिलती है और इसके बाद क्रमशः असंप्रज्ञात समाधि , धर्ममेध समाधि और कैवल्य मिलते हैं ।
# जबतक ईश्वर भाव जागृत नहीं होता , तीर्थ यात्रा मात्र मनोरंजन होता है । जब तीर्थ बुलाते हैं तब वह तीर्थ यात्री वहां से लौटता नहीं ।
# मन की शुद्धता ध्यान है ।
# गुणों से सम्मोहित चित्त की दौड़ गुदा , लिंग और नाभि के मध्य सीमित रहती है और निर्गुण चित्त प्रभु का आइना बन जाता है ।
# प्रभु केंद्रित साधक के लिए कोई अनित्य नहीं , सब नित्य हैं । ईश्वरानुभूति ही विवेक है । असत् में बसे हुए को सत् का बोध होना विवेक है ।
#जैसे धूप से तालाब सुख जाते हैं वैसे ईश्वर समर्पित सात्त्विक श्रद्धावान के विषय - आसक्ति सुख जाती है ।
# जब संध्या का लय गायत्री में , गायत्री का लय एक ओंकार में होने लगे तब समझना चाहिए प्रभु दूर नहीं ।
# बिना भोग बंधन मुक्त हुए प्रभु की व्याकुलता नहीं उठती और बिना व्याकुलता प्रभु से एकत्व नहीं स्थापित होता ।
# भक्ति स्त्री है जो अंतःपुर तक पहुंचती है और ज्ञान पुरुष है जो बाहर - बाहर फैलता रहता है ।
# जैसे पशु घूम - घूम कर चारा खाता है और बाद में एक जगह बैठ कर उसे प्यार से चबाता रहता है वैसे तीर्थ यात्रा , देवदर्शन आदि भ्रमण के बाद एक स्थान पर शांत हो कर वहां से मिली सत् अनुभूति का मनन करते रहना चाहिए ।
# तीर्थ यात्राके बाद विषय -वासना युक्त पुरुष की संगति नहीं करती चाहिए ।
<> सरल हुए बिना सरल को समझना संभव नहीं और प्रभु तो अति सरल हैं ।
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