गीता श्लोक - 13.22 उपद्रष्टा अनुमन्ता च भार्ता भोक्ता महेश्वरः / परमात्मा इति च अपि उक्तः देहे अस्मिन् पुरुषः परः // " अस्मिन देहे पुरुषः परः , उपद्रष्टा , अनुमन्ता , भर्ता , भोक्ता , महेश्वर च परमात्मा इति उक्तः " " इस देह में पुरुष परम है , उपद्रष्टा है , यथार्थ सम्मति देनेवाला है [ अनुमन्ता ] , धारण- पोषण कर्ता है [ भर्ता ] , भोगनें वाला है , महेश्वर है और उसे परमात्मा कहा जाता है " यहाँ इस सूत्र के साथ आप गीता के निम्न सूत्रों कोभी देख सकते हैं :----- 10.20 , 13.29 , 13.32 , 15.7 ,15.9 , 15.11 , उपद्रष्टा शब्द ध्यान की दृष्टि से अपनी अलग जगह रहता है ; द्रष्टा वह होता है जो यह समझता है कि मैं देख रहा हूँ , यहाँ देखनें के साथ मैं का भाव होता है और उपद्रष्टा में मैं की अनुपस्थिति होती है और भाव रहित स्थिति में द्रष्टा दृष्य पर केंद्रित रहता है / देखनें का काम है आँखों का और आँखों को जो ज्योति देखनें को मिलती है वह देह में स्थित उप द्रष्टा से मिलती है / देह में दृष्य को देखनें वाला मूलतः मन है , मन गुणों का गुलाम होता है , जो गुण मन पर भा...
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