गीता में दो पल - 8

<> महतत्त्व क्या है ? भाग - 2 <>
 ● पिछले अंक में महतत्त्व सम्बंधित कुछ बातों में मूल बात थी कि महतत्त्व प्रभु से प्रभु में एक ऐसी सनातन उर्जा का माध्यम है जो ब्रह्माण्ड के दृश्य वर्ग के होनें का मूल श्रोत है । 
<> अब आगे <> 
● भागवत : स्कन्ध - 2 , 3 और 11 ।
 * भागवत के ऊपर ब्यक्त तीन स्कंधों में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल मुनि और प्रभु कृष्ण के सृष्टि - विज्ञान को ब्यक्त किया गया है । 
* सांख्य -योग आधारित ब्रह्मा ,मैत्रेय , कपिल एवं कृष्ण द्वारा ब्यक्त सृष्टि - विज्ञान कहते हैं :---
 <> प्रभु से प्रभु में तीन गुणोंका एक सनातन माध्यम है जिसे माया कहते हैं । 
<> प्रभुका एक रूप कालका भी है जो माया में गति एवं गतिके माध्यमसे परिवर्तन लाता रहता है । 
<> सृष्टि में सबसे पहले मूल तत्वों की उत्पत्ति होती है जिन्हें सर्ग कहते हैं । 
<> सर्गों से ब्रह्मा सृष्टि का विस्तार करते हैं जिसे विसर्ग 
कहते हैं । 
<> सर्गों की उत्पत्ति ही मूल तत्वों की उत्पत्ति है <>
 ● माया पर निरंतर काल का प्रभाव पड़ता रहता है और इस प्रभाव में माया से महतत्व की उत्पत्ति होती है ।
 ● महतत्त्व पर निरंतर पड़ रहे काल के प्रभाव के कारण तीन अहंकारों की उत्पत्ति होती है । 
● तीन अहंकार हैं - सात्विक ,राजस और तामस ।
 ● इन तीन अहंकारों से सृष्टिका विस्तार होता है । 
<> शेष अगले अंक में ---- <> 
~~~ ॐ ~~~

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