ध्यान और हम
- इंद्रियों का स्वभाव है बिषयों में रमण करना
- मन का स्वभाव है इंद्रियों पर भरोषा रखना
- बुद्धि मन की भाषा को समझती है
- और ...
- इन सबको जो उर्जा चलाती है वह है तीन गुणों की उर्जा
सात्विक , राजस और तामस तीन गुणों का माध्यम का नाम है माया
माया से माया में यह संसार है
यह संसार मन का विलास है
और
इसके परे का आयाक ब्रह्म का आयाम है जहाँ मनुष्य संसार को ब्रह्म की छाया रूप में देखता है /
मन - बुद्धि तंत्र की बृत्तयाँ हैं - जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति
जाग्रत स्थिति में इन्द्रियाँ अपनें - अपनें बिषयों की तलाश में होती हैं
और
इद्रिय - बिषय संयोग भोग है /
स्वप्न में ह्रदय जाग्रत अवस्था के अनुभव को प्राप्त करता है और
सुषुप्ति में इन दोनों के अनुभव की लहरें दिखती हैं
जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति , इनमें गुण कर्ता होते हैं
और
प्रभु की अनुभूति गुणातीत की स्थिति में ही संभव है
फिर क्या करें ?
ध्यानका अभ्यास जब गहरा हो जाता है तब इन तीन आयामों से अलग एक और आयाम उठता
है जिसे कहते हैं तुरीय जहाँ गुणों की छाया भी नही पड़ती
और
वहाँ जो होता है वह निर्गुण होता है
ब्रह्म के अलावा और निर्गुण कोई बस्तु नहीं
यह आयाम है - चेतना का आयाम यहाँ इन्द्रियाँ , मन और बुद्धि में चेतना की ऊर्जा भर जाती है
जहाँ ये द्रष्टा बन गए होते हैं और मनुष्य का स्थूल एवं शूक्ष्म शरीर जिसका द्रष्टा होता है
उसका नाम है ब्रह्म
गीता में प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं एक बार नहीं अनेक बार कहते हैं कि अर्जुन इस मौके को हाँथ से न जानें दे , ऐसा मौक़ा कई जन्मों की साधनाओके फलके रूप में मिला है /
तूँ इस युद्ध को ध्यान में बदल दो और गुणों का गुलाम न बन कर निर्गुण अर्थात मुझमें झांको और तब तुम उसे देख कर तृप्त हो जाओगे जिसकी प्यास तुझको बार - बार जन्म लेनें के लिए बाध्य करती है
ध्यान एक माध्यम है अन्तः करण [ मन , बुद्धि , अहँकार , चित्त ] को गुणों से मुक्त करानें का
ध्यान में मिली रिक्तता में ठहरो, कुछ घड़ी ....
ध्यान की रिक्तता में ठहरा ब्यक्ति देखता है ....
उस उभडती हुयी तस्बीर की ....
जो उस तस्बीर में होता है ---
वह इंद्रिय रहित है लेकिन उसकी इन्द्रियाँ सर्वत्र हैं
अर्थात
ब्रह्म की
जो निराकार है
निराकार को देखनें की ऊर्जा आप की आँखों को मिलती है ----
ध्यान के पकनें पर
=== ओम् ======
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