गीता के मूल तत्त्व
गीता तत्त्वम्
भाग – 01
गीता के तत्त्व क्या हैं?
पुरुष [ प्रभु , परमात्मा ] , आत्मा [ जीवात्मा ] ,
प्रकृति , तीन गुण , माया
गीता के ऊपर दिए गए मूल तत्त्व हैं जिनसे संसार एवं संसार की सभीं सूचनाएं हैं / विज्ञान का
टाइम – स्पेस फ्रेम भी इनसे ही है /
गीता में परमात्मा कर्ता है और द्रष्टा भी है / परमात्मा एक ऐसा माध्याम है जो स्थिर है अब्यय है , अब्यक्तातीत है , गुणातीत है , मायामुक्त है , सीमारहित है , सनातन है और सब का आदि - अंत इससे एवं इसमें है /
संसार में मनुष्य को छोड़ कर अभीं तक कोई और जीव ऐसा नहीं मिला है जो परमात्मा के सम्बन्ध में सोचता हो / मनुष्य परमात्मा को बुद्धि स्तर पर जानना चाहता है और अन्य जीव परमात्मा में जीते हैं / सभीं जीव प्रकृति में एवं प्रकृति के नियमों में जी रहे हैं लेकिन मनुष्य पूजता तो है प्रभु को लेकिन जीता है स्व निर्मित स्पेस में और मनुष्य के तनहाई भरे जीवन का मात्र एक कारण है कि वह प्रभु को भी भोग के लिए प्रयोग करना चाहता है जो संभव नहीं /
प्रभु से प्रभु में हम सब हैं
प्रभु से प्रभु में हम सब का अंत भी होगा
लेकिन
भोग का सम्मोहन हमें प्रभु से दूर करता जाता है /
====ओम्=====
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